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________________ इनके स्थान पर प्रोपपातिक में (36) चक्कलक्खणं, (38) चम्मलक्खणं तथा (46) वत्थुनिवेसन कलाओं का उल्लेख है। रायपसेणिय सूत्र में उन्तीसवीं कला 'चूर्णयुक्ति' नहीं है, (38) वीं कला 'चक्रलक्षण' विशेष है / छप्पनवीं कला 'दृष्टियुद्ध' के स्थान पर 'यष्टियुद्ध' है / अन्य सभी कलाएँ ज्ञाताधर्म के अनुसार ही हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 8 शांतिचन्द्रीयवत्ति, वक्षस्कार-२ पत्र संख्या 136-2, 137-1 में सभी कलाएँ ज्ञातासूत्र की-सी ही हैं, किन्तु संख्या क्रम में किंचित् अन्तर है। ज्ञातासूत्र में पायी हुई बहत्तर कलानों के नामों में और समवायांग में पाई हुई बहत्तर कलाओं के नामों में बहत अन्तर है। समवायांग की कलासूची यहाँ प्रस्तुत है (1) लेह-लेख लिखने की कला (2) गणियं---गणित (3) रूवं रूप सजाने की कला (4) नट्ट-नाट्य करने की कला (5) गीयं-गीत गाने की कला (6) वाइयं-वाद्य बजाने को कला (7) सरगयं-स्वर जानने की कला (8) पुक्खरयं-ढोल प्रादि वाद्य बजाने की कला (9) समतालं-ताल देना। (10) जूयं--जुमा खेलने की कला (11) जणवायं-वार्तालाप की कला (12) पोक्खच्चं--नगर-संरक्षण की कला (13) अट्ठावय-पासा खेलने की कला (14) दगमट्रियं-पानी और मिट्टी के संमिश्रण से वस्तु बनाने की कला (15) अन्नविहिं–अन्न उत्पन्न करने की कला (16) पाणविहिं पानी को उत्पन्न करने तथा शुद्ध करने की कला (17) वत्थविहिं ---वस्त्र बनाने की कला (18) सयणविहि-शय्या निर्माण करने की कला (19) प्रज्ज-संस्कृत भाषा में कवितानिर्माण की कला। (20) पहेलियं प्रहेलिका निर्माण की कला (21) मागहियं-छन्द विशेष बनाने की कला (22) गाह-प्राकृत भाषा में गाथा निर्माण की कला (23) सिलोग-श्लोक बनाने की कला --- - ----- 97. राजप्रश्नीयसूत्र, पत्र 340, 98. समवायांग, समवाय-७२. 99. ज्ञातसूत्र-१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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