________________ धार्मिक कर्तव्यों को सम्यक प्रकार से पालन करना / जब मेघकूमार पाठ वर्ष का हो गया तब शुभ नक्षत्र और श्रेष्ठ लग्न में उसे कलाचार्य के पास ले जाया गया। प्राचीन युग में शिक्षा का प्रारम्भ पाठ वर्ष में माना मया, क्योंकि तब तक बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता था। भगवती और अन्य प्रागमों में भी इसी उम्र का उल्लेख है। कथाकोश-प्रकरण', ज्ञानपंचमी कथा'२, कुवलयमाला' 3 आदि में भी इसी उम्र का उल्लेख है / स्मृतियों में पांच वर्ष की उम्र में शिक्षा देने का उल्लेख है / पर प्रागमों में पाठ वर्ष ही बताया है / उस युग में विविध कलाओं का गहराई से अध्ययन कराया जाता था। पुरुषों के लिए बहत्तर कलाएं और स्त्रियों के लिए चौसठ कलाएँ थी। केवल ग्रन्थों से ही नहीं, उन्हें अर्थ और प्रयोगात्मक रूप से भी सिखलाया जाता था। वे कलाएँ मानव की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के पूर्ण विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी थीं। मानसिक विकास उच्चतम होने पर भी शारीरिक विकास यदि न हो तो उसके अध्ययन में चमत्कृति पैदा नहीं हो सकती। प्रस्तुत प्रागम में बहत्तर कलाओं का उल्लेख हुआ है / बहत्तर कलाओं के नाम समवायांग, राजप्रश्नीय, प्रोपपातिक और कल्पसूत्र सुबोधिका टीका में भी प्राप्त होते हैं। पर ज्ञातासूत्र में ग्राई हुई कलाओं के नामों में और उन प्रागमों में पाये हुए नामों में कुछ अन्तर है / तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु हम यहाँ दे रहे हैं। -ज्ञातासूत्र के अनुसार 5 (1) लेख (2) गणित (3) रूप (4) नाट्य (5) गीत (6) वादित्र (7) स्वरगत (8) पुष्करगत (9) समताल (10) द्यूत (11) जनवाद (12) पाशक (पासा) (13) अष्टापद (14) पुर:काव्य (15) दकमृत्तिका (16) अन्नविधि (17) पान विधि (18) वस्त्रविधि (19) विलेपनविधि (20) शयनविधि (21) आर्या (22) प्रहेलिका (23) मागधिका (24) गाथा (25) गीति (26) श्लोक (27) हिरण्य युक्ति (28) स्वर्ण युक्ति (29) चूर्णयुक्ति (30) प्राभरणविधि (31) तरुणोप्रतिकर्म (32) स्त्रीलक्षण (33) पुरुषलक्षण (34) हयलक्षण (35) गजलक्षण (36) गोलक्षण (37) कुक्कुटलक्षण (38) छत्रलक्षण (39) दण्डलक्षण (40) असिलक्षण (41) मणिलक्षण (42) काकणीलक्षण (43) वास्तुविद्या (44) स्कन्धावारमान (45) नगरमान (46) व्यूह (47) प्रतिव्यूह (48) चार (49) प्रतिचार (50) चक्रव्यूह (51) गरुडव्यूह (52) शकटव्यूह (53) युद्ध (54) नियुद्ध (55) युद्धनियुद्ध (56) दृष्टियुद्ध (57) मुष्टियुद्ध (58) बाहुयुद्ध (59) लतायुद्ध (60) इषुशास्त्र (61) छरुप्रवाद (62) धनुर्वेद (63) हिरण्यपाक (64) स्वर्णपाक (65) सूत्रखेड (66) वस्त्रखेल (67) नालिकाखेल (68) पत्रच्छेद्य (69) कटच्छेद्य (70) सजीव (71) निर्जीव (72) शकुनिरुत / प्रोपपातिक में पांचवीं कला 'गीत' है, पच्चीसवीं कला 'गीति' और छप्पनवीं कला 'दृष्टियुद्ध' नहीं है। 90. भगवती-अभयदेव वृत्ति 11.11, 429, पृ० 999. 91. कथाकोश प्रकरण पृ० 6. 92. ज्ञानपंचमी कहा 6.92 93. कुवलयमाला 21, 12-13, 94, (क) डी. सी. दासगुप्त 'द जैन सिस्टम आफ एजुकेशल' पृ० 74. (ख) एच. प्रार. कापडिया 'द जैन सिस्टम प्राफ एजुकेशन' पृ० 206. 95. ज्ञातासूत्र पृ. 48 (प्रस्तुत संस्करण) 96. प्रोपपातिक 40 पत्र 185. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org