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________________ है-दोहद के पूर्ण न होने पर जो सन्तान उत्पन्न होती है उसका अवयव विकृत होता है। या तो वह कुबड़ा होगा, लुज-पुंज, जड़, बौना, बाड़ा या अंधा होगा, अष्टावक्र की तरह कुरूप होगा। किन्तु दोहद पूर्ण होने पर सन्तान सर्वांगसुन्दर होती है। आचार्य हेमचन्द्र के समय तक दोहला माता की मनोरथ-पूर्ति के अर्थ में प्रचलित था। राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और दक्षिण भारत के कर्नाटक, प्रान्ध्र और तमिलनाडु में सातवें माह में साते, सांधे और सीमन्त के रूप में समारंभ मनाया जाता है। सात महीने में गर्भस्थ शिशु प्रायः शारीरिक पूर्णता को प्राप्त कर लेता है। ऐसा भी माना जाता है कि यदि सात मास में बालक का जन्म हो जाता है और वह जीवित रहता है तो महान यशस्वी होता है। वासुदेव श्रीकृष्ण को सातवें माह में उत्पन्न हुअा माना जाता है। सुश्रुत प्रादि में चार माह में दोहद पूर्ति का समय बताया है। ज्ञातधर्मकथा,८५ कथा-कोश६ और कहाकोसू 50 ग्रादि ग्रंथों में ऐसे प्रसंग मिलते हैं कि तीसरे, पांचवें और सातवें माह में दोहद की पूर्ति की गई / क्योंकि उसी समय उसको दोहद उत्पन्न हुए थे। आधुनिक शरीर-शास्त्रियों का भी यह अभिमत है कि अवयवनिर्माण की प्रक्रिया तृतीय मास में पूर्ण हो जाती है, उसके पश्चात् भ्रूण के प्रावश्यक अंग-प्रत्यंग में पूर्णता पाती रहती है। अंगविज्जा जैन साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। उस ग्रन्थ में विविध दृष्टियों से दोहदों के संबंध में गहराई से चिन्तन किया है। जितने भी दोहद उत्पन्न होते हैं, उन्हें पाँच भागों में विभक्त किया जा सकता हैशब्दगत, गंधगत, रूपगत, रसगत और स्पर्शगत / क्योंकि ये ही मुख्य इन्द्रियों के विषय हैं और इन्हीं की दोहदों में पूर्ति की जाती है। प्राचीन साहित्य में जितने भी दोहद आये हैं, उन सभी का समावेश इन पाँचों में हो जाता है। वैदिक वाङमय में, बौद्ध जातक साहित्य में और जैन कथा साहित्य में दोहद उत्पत्ति और उसकी पूर्ति के अनेक प्रसंग मिलते हैं / चरक आदि में भी इस पर विस्तार से चर्चा है / प्राचीन ग्रंथों के प्राधार से पाश्चात्य चिन्तक डा० बलमफील्ड आदि ने दोहद के सम्बन्ध में कुछ चिन्तन किया है। कला : एक विश्लेषण व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक माना गया था। प्राचीन शिक्षापद्धति का उद्देश्य था चरित्र का संगठन, व्यक्तित्वनिर्माण, संस्कृति की रक्षा, सामाजिक 84. दौहदविमानात कुब्ज कुणि खजं जडं वामनं विकृताक्षमनक्षं वा नारी सुतं जनयति / तस्मात् सा यद्यदिच्छेत् तत्तस्य दापयेत / लब्धदौहदा हि वीर्यवन्तं चिरायुषञ्च पुत्र जनयति / -सुश्रुतसंहिता, अ० 3, शरीरस्थानम्-१४ 85. ज्ञाताधर्मकथा-१, पृ० 10 86. कथाकोश पृ० 14 . 87. कहाकोसु-सं-४९ / 88. अंगविद्या अध्याय 36 89. The Dohado or Craving of Pregnant women -Journal of American Oriental Society. Vol IX Part 1st, Page 1-24. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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