________________ 248 ] [ ज्ञाताधर्मकथा 'हे स्वामिन् ! राजा कुम्भ के द्वारा मिथिला नगरी से निर्वासित हुए हम सीधे यहाँ आये हैं / हे स्वामिन् ! हम अापकी भुजाओं की छाया ग्रहण किये हुए अर्थात् आपके संरक्षण में रह कर निर्भय और उद्धेगरहित होकर सुख-शान्तिपूर्वक निवास करना चाहते हैं।' तब काशीराज शंख ने उन सुवर्णकारों से कहा-'देवानुप्रियो ! कुम्भ राजा ने तुम्हें देशनिकाले की आज्ञा क्यों दी ?' ___तब सुवर्णकारों ने शंख राजा से इस प्रकार कहा-'स्वामिन् ! कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा मल्ली कुमारी के कुण्डलयुगल का जोड़ खुल गया था / तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाया / बुलाकर यावत् (उसे सांधने के लिए कहा / हम उसे अनेक उपाय करके भी सांध नहीं सके, अतः) देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी।' ९३-तए णं से संखे सुवन्नगारे एवं वयासी—'केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! कुभगस्स धूया पभावईए देवीए अत्तया मल्ली विदेहरायवरकन्ना?' तए णं ते सुवण्णगारा संखरायं एवं वयासी—'णो खलु सामी ! अन्ना काई तारिसिया देवकन्ना वा जाव [असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा] जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना।' . : तए णं कुंडलजुअलजणियहासे दूतं सद्दावेइ, जाव तहेव पहारेत्थ गमणाए / . तत्पश्चात् शंख राजा ने सुवर्णकारों से कहा- 'देवानुप्रियो ! कुम्भ राजा को पुत्री और प्रभावती की आत्मजा विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली कैसी है ?' तब सुवर्णकारों ने शंखराज से कहा-'स्वामिन् ! जैसी विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली है, वैसी कोई देवकन्या अथवा असुरकन्या, नागकन्या, यक्षकन्या, गन्धर्वकन्या भी नहीं है, कोई राजकुमारी भी नहीं है।' तत्पश्चात् कुण्डल की जोड़ी से जनित हर्ष वाले शंख राजा ने दूत को बुलाया, इत्यादि सब वत्तान्त पूर्ववत जानना अर्थात शंख राजा ने भी मल्ली कमारी की मँगनी के लिए दत भेज दिया और उससे कह दिया कि मल्ली कुमारी के शुल्क रूप में सारा राज्य देना पड़े तो दे देना। दूत मिथिला जाने को रवाना हो गया / राजा अदीनशत्रु 94 तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरुजणवए होत्था, हथिणाउरे नयरे, अदीणसत्तू नामं राया होत्था, जाव [रज्जं पसासमाणे] विहरइ। उस काल और उस समय में कुरु नामक जनपद था / उसमें हस्तिनापुर नगर था। अदीनशत्रु नामक वहाँ राजा था / यावत् वह (राज्यशासन करता सुखपूर्वक) विचरता था। ९५-तत्थ णं मिहिलाए कुभगस्स पुत्ते पभावईए अत्तए मल्लीए आणुजायए मल्लदिन्नए नाम कुमारे जाव' जुवराया यावि होत्था। 1. श्री. सूत्र 143 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org