________________ आठवां अध्ययन : मल्ली ] [ 247 किये, परन्तु उस संधि को जोड़ने के लिए शक्तिमान् न हो सके। अतएव (आपकी आज्ञा हो तो) हे स्वामिन् ! हम इस दिव्य कुण्डलयुगल सरीखा दूसरा कुण्डलयुगल बना दें।' ९०–तए णं से कुभए राया तोसे सुवण्णगारसेणीए अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते तिवलियं भिडि निडाले साहटु एवं वयासी _ 'केस णं तुम्भे कलायणं भवह ? जे णं तुम्भे इमस्स कुडलजुयलस्स नो संचाएह संधि संघाडेत्तए ?' ते सुवण्णगारे निन्विसए आणवेइ। सुवर्णकारों का कथन सुन कर और हृदयंगम करके कुम्भ राजा क्रुद्ध हो गया / ललाट पर तीन सलवट डाल कर इस प्रकार कहने लगा--'अरे ! तुम कैसे सुनार हो जो इस कुण्डलयुगल का जोड़ भी सांध नहीं सकते? अर्थात् तुम लोग बड़े मूर्ख हो। ऐसा कहकर उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी। ९१-तए णं ते सुवण्णगारा कुभेणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा जेणेव साइं साइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाए रायहाणीए मज्झमझेणं निक्खमंति / निक्खमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव कासी जणवए, जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागच्छंति / उवागच्छित्ता अगुज्जाणंसि सगडीसागडं मोएंति, मोइत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मज्झमझेणं जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल० जाव बद्धाति, वद्धावित्ता पाहुडं पुरओ ठाति, ठावित्ता संखरायं एवं क्यासी तत्पश्चात् कुम्भ राजा द्वारा देशनिर्वासन की प्राज्ञा पाये हुए वे सुवर्णकार अपने-अपने घर आये / आकर अपने भांड, पात्र और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी के बीचोंबीच होकर निकले / निकल कर विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ काशी जनपद था और जहाँ वाणारसी नगरी थी, वहाँ आये। वहाँ आकर अग्र (उत्तम) उद्यान में गाड़ी-गाड़े छोड़े / छोड़ कर महान् अर्थ वाले राजा के योग्य बहमल्य उपहार लेकर, वाणारसी नगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ काशीराज शंख था वहाँ आये / प्राकर दोनों हाथ जोड़ कर यावत् जय-विजय शब्दों से बंधाया। वधाकर वह उपहार राजा के सामने रखा / रख कर शंख राजा से इस प्रकार निवेदन किया ९२–'अम्हे णं सामी ! मिहिलाओ नयरीओ कुभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा इहं हव्वमागया, तं इच्छामो णं सामी! तुभं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुविग्गा सुहं सुहेणं परिवसिउं।' तए णं संखे कासीराया ते सुवष्णगारे एवं क्यासी.--"कि णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! कुभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता ?' तए णं ते सुवण्णगारा संखं एवं वयासी—'एवं खलु सामी ! कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए कुडलजुयलस्स संधी विसंघडिए / तए णं से कुभए सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ, सद्दावित्ता जाव निव्विसया आणत्ता।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org