________________ आठवां अध्ययन : मल्ली ] [ 249 तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह अणेगखंभसयसण्णिविठ्ठ, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, ते वि तहेव पच्चप्पिणंति / उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था / वह युवराज था। किसी समय एक बार मल्ल दिन कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया / बुला कर इस प्रकार कहा-तम जानो और मेरे प्रमदवन (घर के उद्यान) में एक बड़ी चित्रसभा का निर्माण करो, जो सैकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, इत्यादि / यावत् उन्होंने ऐसा ही करके, चित्रसभा का निर्माण करके प्राज्ञा वापिस लौटा दी। ९६--तए णं मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगरसेणि सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासो--'तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बोय-कलिएहिं स्वेहिं चित्तेह। चित्तित्ता जाव पच्चप्पिणह। तए णं सा चित्तगरसेणी तह त्ति पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सयाई गिहाई, तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तूलियाओ वन्नए य गेण्हति, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अणुपविसति, अणुपविसित्ता भूभिभागे विरचति (विहिवति), विरचित्ता (विहिवित्ता) भूमि सज्जति, सज्जित्ता चित्तसभं हावभाव जाब चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था / तत्पश्चात मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की श्रेणी को बलाया। बला कर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! तुम लोग चित्रसभा को हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों से (चित्रों से) चित्रित करो। चित्रित करके यावत् मेरी प्राज्ञा वापिस लौटायो / ' तत्पचात् चित्रकारों की श्रेणी ने 'तथा-बहुत ठीक' इस प्रकार कह कर कुमार की आज्ञा शिरोधार्य की। फिर वे अपने-अपने घर गये। घर जाकर उन्होंने तूलिकाएँ ली और रंग लिए। लेकर जहाँ चित्रसभा थी वहाँ पाए / पाकर चित्रसभा में प्रवेश किया। प्रवेश करके भूमि के भागों का विभाजन किया। विभाजन करके अपनो-अपनी भूमि को सज्जित किया--तैयार किया--चित्रों के योग्य बनाया / सज्जित करके चित्रसभा में हाव-भाव आदि से युक्त चित्र अंकित करने में लग गये। विवेचन-हाव-भाव आदि साधारणतया स्त्रियों की चेष्टाओं को कहते हैं / उनका परस्पर अन्तर यह है-हाव अर्थात् मुख का विकार, भाव अर्थात् चित्त का विकार, विलास अर्थात् नेत्र का विकार और बिब्बोक अर्थात् इष्ट अर्थ की प्राप्ति से उत्पन्न होने वाला अभिमान का भाव / युवराज मल्लदिन्न ने इन सभी गार रस के भावों को चित्रित करने का आदेश दिया। ९७-तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे चित्तगरलद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया-जस्स णं दुपयस्स वा चउपयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तेइ / उन चित्रकारों में से एक चित्रकार को ऐसी चित्रकारलब्धि (असाधारण योग्यता) लब्ध For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org