________________ चैत्यक बिम्बसारपुरी २और कुशाग्रपुर 3 थे। बिम्बसार के शासनकाल में राजगह में आग लग जाने से वह जल गई इसलिए राजधानी हेतु नवीन राजगृह का निर्माण करवाया / युवानच्वाङ् का अभिमत है कि कुशागारपुर या कुशाग्रपुर प्राग में भस्म हो जाने से राजा बिम्बसार श्मशान में गये और नये राजगह का निर्माण करवाया। फाह्यान का मानना है नये नगर का निर्माण अजातशत्रु ने करवाया, न कि बिम्बसार ने। चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भारत पाया था तो वह राजगृह में भी गया था, पर महावीर और बुद्ध युग का विराट् वैभव उस समय नहीं था / 4 महाभारत में राजगृह को पांच पहाड़ियों से परिवेष्टित कहा है (1) वैराह, (2) वाराह, (3) वृषभ, (4) ऋषिगिरि और (5) चैत्यगिरि६५ / फाह्यान ने भी इस सत्य तथ्य को स्वीकार किया / 66 युवानच्चाङ्ग का भी यही अभिमत है।६७ गौतम बुद्ध के समय राजगह की परिधि तीन मील के लगभग थी।८ राजनीति के केन्द्र के साथ ही वह धार्मिक केन्द्र भी था। महाभारत के राजगृह की पहाड़ियों को सिद्धों, यतियों और मुनियों का शरण भी बताया है। वहाँ पर अनेक सन्तमण ध्यान की साधना करते थे। जैन और बौद्ध साहित्य में उनके उल्लेख है। भगवती आदि में गर्म पानी के कुण्डों का वर्णन है। युवान्च्वाङ ने भी इस बात को स्वीकार किया है। उस पानी से अनेक चर्मरोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाते थे, प्राज भी वे कुण्ड हैं। स्वप्न : एक चिन्तन प्रस्तुत अध्ययन में महारानी धारिणी के स्वप्न का वर्णन है / वह स्वप्न में अपने मुख में हाथी को प्रवेश करते हुए देखती हैं / जहाँ कहीं भी आगम-साहित्य में कोई भी विशिष्ट पुरुष गर्भ में प्राता है, उस समय उसकी माता स्वप्न देखती है। स्वप्न न जागते हुए आते हैं, न प्रगाढ निद्रा में पाते हैं किन्तु जब अर्धनिद्रित अवस्था में मानव होता है उस समय उसे स्वप्न आते हैं।' अष्टांगहृदय में लिखा है७२-जब इन्द्रियां अपने विषय से निवृत्त होकर प्रशान्त हो जाती हैं और मन इन्द्रियों के विषय में लगा रहता है तब वह स्वप्न देखता है। 61. पोलिटिकल हिस्ट्री प्रॉव ऐंश्येंट इंडिया पृ. 70 62. द लाइफ एण्ड वर्क प्रॉव बुद्धघोष, पृ. 87 टिप्पणी 63. बील, द लाइफ प्रॉव युवानच्चाड पृ. 113 पोजिटर ऐंश्येट इण्डियन हिस्टोरिकल ट्रेडिशन पृ. 149 64. लेग्गे, फाहियान पृ. 80 65. महाभारत सभापर्व अध्याय 54 पंक्ति 120 66. फाहियान, गाइल्स लन्दन पृ. 49 67. ऑन युवान्च्चाङ्ग, वाटर्स 2, 153 68. अॉन युवान्च्वाङ्ग, वाटर्स 2, 153 69. एतेषु पर्वतेन्द्रेषु सर्वसिद्ध समालयाः / यतीनामाश्रमश्चैव मुनीनां च महात्मनाम् / वृषभस्य तमालस्य महावीर्यस्य वै तथा / गंधर्वरक्षसां चैव नागानां च तथाऽऽलयाः॥ -महाभारत सभापर्व अ. 21, 12-14 70 प्रॉन युवान्च्चाङ्ग, वाटर्स, 2, 154 71. भगवती सूत्र 16-6 72. अष्टांगहृदय निदानस्थान. 9 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org