________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात | [ 45 तथा धूप इस प्रकार जलायो कि उनकी सुगंध से सारा वातावरण मधमघा जाय, श्रेष्ठ सुगंध के कारण नगर सुगंध की गुटिका जैसा बन जाय, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक (मुक्केवाज), विडंवक (विदूषक), कथाकार, प्लवक (तैराक), नृत्यकर्ता, प्राइक्खग-शुभाशुभ फल बताने वाले, बांस पर चढ़ कर खेल दिखाने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तूणा-वीणा बजाने वाले, तालियां पीटने वाले आदि लोगों से युक्त करो एवं सर्वत्र (मंगल) गान करायो / कारागार से कैदियों को मुक्त करो / तोल और नाप को वृद्धि करो। यह सब करके मेरी प्राज्ञा वापिस सौंपो। यावत् कौटुम्बिक पुरुष राजाज्ञा के अनुसार कार्य करके प्राज्ञा वापिस देते हैं। ९१-तए णं से सेणिए राया अट्ठारससेणीप्पसेणोओ सद्दावेति / सहावित्ता एवं वदासी'गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! रायगिहे नगरे अभितरबाहिरिए उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुडंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणु यमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरितं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं ठिइवडियं दसदिवसियं करेह कारवेह य / करित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' / ते वि करेन्ति, करित्ता तहेव पच्चप्पिणंति / तत्पश्चात श्रेणिक राजा कुभकार आदि जाति रूप अठारह श्रेणियों को और उनके उपविभाग रूप अठारह प्रश्रेणियों को बुलाता है / बुलाकर इस प्रकार कहता है--देवानुप्रियो ! तुम जागो और राजगृह नगर के भीतर और बाहर दस दिन की स्थितिपतिका (कुलमर्यादा के अनुसार होने वाली पुत्रजन्मोत्व को विशिष्ट रीति) कराओ। वह इस प्रकार है-दस दिनों तक शुल्क (चुगी) लेना बंद किया जाय, गायों वगैरह का प्रतिवर्ष लगने वाला कर माफ किया जाय, कुटवियोंकिसानों आदि के घर में बेगार लेने आदि के लिए राजपुरुषों का प्रवेश निषिद्ध किया जाय, दंड (अपराध के अनुसार लिया जाने वाला द्रव्य) न लिया जाय, किसी को ऋणी न रहने दिया जाय, अर्थात् राजा की तरफ से सबका ऋण चुका दिया जाय, किसी देनदार को पकड़ा न जाय, ऐसी घोषणा कर दो तथा सर्वत्र मृदंग आदि बाजे बजवानो। चारों ओर विकसित ताजा फूलों की मालाएँ लटकायो / गणिकाएँ जिनमें प्रधान हों ऐसे पात्रों से नाटक करवायो। अनेक तालाचरों क्षाकारियों) से नाटक करवाओ। ऐसा करो कि लोग हर्षित होकर क्रीड़ा करें। इस प्रकार यथायोग्य दस दिन की स्थितिपतिका करो-करायो और मेरी यह प्राज्ञा मुझे वापिस सौंपो / राजा श्रेणिक का यह आदेश सुनकर वे इसी प्रकार करते हैं और राजाज्ञा वापिस करते हैं / ९२--तए णं से सेणिए राया बाहिरियाए उवढाणसालाए सोहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने सइएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य जाहि दाएहिं भागेहि दलयमाणे दलयमाणे पडिच्छमाणे पडिच्छेमाणे एवं च णं विहरति / तत्पश्चात श्रेणिक राजा बाहर की उपस्थानशाला (सभाभवन) में पूर्व की ओर मुख करके, श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा और सैकड़ों हजारों और लाखों के द्रव्य से याग (पूजन) किया एवं दान दिया। उसने अपनी आय में से अमुक भाग दिया और प्राप्त होने वाले द्रव्य को ग्रहण करता हुना विचरने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org