________________ 46 / [ ज्ञाताधर्मकथा अनेक संस्कार ९३–तए णं तस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जातकम्मं करेन्ति, करित्ता बितियदिवसे जागरियं करेन्ति, करित्ता ततियदिवसे चंदसूरदंसणियं करेन्ति, करित्ता एवामेव निव्वत्ते असुइजातकम्मकरणे संपत्ते बारसाहदिवसे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेन्ति, उवक्खडावित्ता मित्त-णाइणियग-सयण-संबंधि-परिजणं बलं च बहवे गणणायग-दंडणायग जाव (राईसर-तलवर-माइंबियकोड बिय -मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पोठमद्द-नगर-निगम-सेटि-सेणावइ.सत्थवाह-दूयसंधिवाले) आमंतेति / / तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन जातकर्म (नाल काटना ग्रादि) किया। दूसरे दिन जागरिका (रात्रि-जागरण) किया। तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य का दर्शन कराया। इस प्रकार अशुचि जातकर्म की क्रिया सम्पन्न हुई / फिर बारहवां दिन पाया तो विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुएँ तैयार करवाई / तैयार करवाकर मित्र, वन्धु अादि ज्ञाति, पुत्र प्रादि निजक जन, काका आदि स्वजन, श्वसुर आदि सम्बन्धी जन, दास आदि परिजन, सेना और बहुत से गणनायक, दंडनायक यावत् (राजा, राजकुमार, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री, गणक, दौवारिक, अमात्य, चेट, पीठमर्द, नगरवासी, निगमवासी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और संधिपाल इन सब) को आमंत्रण दिया। 94 तओ पच्छा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सव्वालंकार-विभूसिया महइमहालयंसि भोयणमंडवंसि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्ताणाइ.' गणणायग जाव सद्धि आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुजेमाणा एवं च णं विहरइ। उसके पश्चात् स्नान किया, बलिकर्म किया, मसितिलक प्रादि कौतुक किया, यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित हए। फिर वहत विशाल भोजन-मंडप में उस अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का मित्र, ज्ञाति आदि तथा गणनायक प्रादि के साथ प्रास्वादन, विस्वादन, परस्पर विभाजन और परिभोग करते हुए विचरने लगे। नामकरण संस्कार ९५-जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजण०२ गणणायग०' विपुलेणं पुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति, संमाणेति, सक्कारित्ता सम्माणित्ता एवं वयासो-'जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अकालमेहेसु डोहले पाउन्भूए, तं होउ णं अम्हं दारए मेहे नामेणं मेहकुमारे / ' तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूबं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्ज करेन्ति / / इस प्रकार भोजन करने के पश्चात् शुद्ध जल से पाचमन (कुल्ला) किया। हाथ-मुख धोकर स्वच्छ हुए परम शुचि हुए। फिर उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धीजन, परिजन आदि तथा गणनायक आदि का विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया / सत्कार-सन्मान करके इस प्रकार कहा—क्योंकि हमारा यह पुत्र जब गर्भ में स्थित था, तब इसकी 1-2-3. सूत्र 93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org