________________ अष्टम्म शतक : उद्देशक-९ ] [ 397 [120-5 उ.] गौतम ! जैसे तैजसशरीर के विषय में कहा है, वैसे यहाँ भी, यावत्-देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं, यहाँ तक कहना चाहिए। 121. जस्स पं भंते ! पोरालियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स कि बंधए, अबंधए ? गोयमा! नो बंधए, प्रबंधए / [121 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिकशरीर का देशबन्ध है, भगवन् ! क्या वह वैक्रियशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? 122. एवं जहेव सबबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स / [122] जिस प्रकार सर्वबन्धक के विषय में (उपर्युक्त) कथन किया, उसी प्रकार देशबन्ध के विषय में भी यावत्-कर्मणशरीर तक कहना चाहिए। 123. [1] जस्स णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स सव्वबंधे से गं भंते ! पोरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? गोयमा ! नो बंधए, प्रबंधए / / [123-1 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के वैक्रियशरीर का सर्वबन्ध है, क्या वह औदारिकशरीर का बन्धक है या अबन्धक ? [123-1 उ.] गौतम ! वह बन्धक नहीं, प्रबन्धक है / [2] पाहारगसरीरस्स एवं चेव / [123-2] इसी प्रकार पाहारकशरीर के विषय में कहना चाहिए। [3] तेयगस्स कम्मगस्स य जहेव पोरालिएणं समं भणियं तहेव भाणियन्वं जाव देसबंधए, नो सम्बबंधए। [123-3] तैजस और कार्मणशरीर के विषय में जैसे औदारिकशरीर के साथ कथन किया है, वैसा ही कहना चाहिए, यावत्-वह देशबन्धक है, सर्ववन्धक नहीं, यहाँ तक कहना चाहिए। 124. [1] जस्स णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! पोरालियसरीरस्स कि बंधए, प्रबंधए ? गोयमा ! नो बंधए, प्रबंधए / [124-1 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के वैक्रियशरीर का देशबन्ध है, क्या वह औदारिकशरीर का बन्धक है, अथवा प्रबन्धक है ? [124-1 उ.] गौतम ! वह बन्धक नहीं, अबन्धक है / [2] एवं जहा सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेण वि माणियन्वं जाब कम्मगस्स / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org