________________ 366 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मोहणिज्जयाए-तीव्र मिथ्यात्व-तीव दर्शनमोहनीय के कारण से / तिब्वचरित्तमोहणिज्जयाए = यहाँ कषाय से अतिरिक्त नोकषायरूप चारित्रमोहनीय का ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि तीव्रक्रोधादिवश कषायचारित्रमोहनीय के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है / साणुक्कोसयाए= अनुकम्पायुक्तता से।' पांच शरीरों के एक दूसरे के साथ बन्धक-प्रबन्धक की चर्चा-विचारणा 120. [1] जस्स णं भंते ! पोरालियसरीरस्स सम्वबंधे से भंते ! बेउब्बियसरीरस्स किं बंधए, प्रबंधए? गोयमा ! नो बंधए, प्रबंधए / [120-1 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबन्ध है, क्या वह जीव वैक्रियशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? [120-1 उ.] गौतम ! वह बन्धक नहीं, अबन्धक है / [2] पाहारगसरीरस्स कि बंधए, प्रबंधए ? गोयमा ! नो बंधए, प्रबंधए / [120-2 प्र.] भगवन् ! (जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबन्ध है) क्या वह जीव आहारकशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? [120-2 उ.] गौतम ! वह बन्धक नहीं, अबन्धक है / [3] तेयासरीरस्स कि बंधए, प्रबंधए ? गोयमा ! बंधए, नो प्रबंधए। [120-3 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिक शरीर का सर्वबन्ध है, क्या वह जीव तैजसशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? [120-3 उ.] गौतम ! वह बन्धक है, प्रबन्धक नहीं / [4] जइ बंधए कि देसबंधए, सव्वबंधए? गोयमा ! देस बंधए, नो सन्चबंधए। [120.4 प्र.] भगवन् ! यदि वह तैजसशरीर का बन्धक है, तो क्या वह देशबन्धक है या सर्ववन्धक ? [120-4 उ.] गौतम ! वह देशबन्धक है, सर्वबन्धक नहीं। [5] कम्मासरीरस्स कि बंधए, अबंधए ? जहेव तेयगस्स जाव देसबंधए, नो सव्वबंधए / [120-5 प्र.) भगवन् ! औदारिकशरीर का सर्वबन्धक जीव कार्मणशरीर का बन्धक है या प्रबन्धक ? 1. भगवतीसूत्र प्र वृत्ति, पत्रांक 411-412 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org