________________ 394] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [113 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध कालतः कितने काल तक रहता है ? [113 उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध (काल की अपेक्षा से) दो प्रकार का कहा गया है। यथा--अनादि-सपर्यवसित और अनादि-अपर्यवसित / जिस प्रकार तैजस शरीर प्रयोगबन्ध का स्थितिकाल (सू. 94 में) कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। 114. एवं जाव अंतराइयकम्मरस / [114] इसी प्रकार यावत्-अन्तराय-कर्म-(कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध के स्थितिकाल) तक कहना चाहिए। 115. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधतरं गं भंते ! कालमो केवच्चिर होइ ? गोयमा! अणाईयस्स० एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव / [115 प्र.) भगवन् ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [115 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध के कालतः) अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित (इन दोनों रूपों) का अन्तर नहीं होता / जिस प्रकार तैजसशरीरप्रयोगबन्ध के अन्तर के विषय में कहा गया था, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए / 116. एवं जाव अंतराइयस्स / [116] इसी प्रकार यावत्--अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध के अन्तर तक समझना चाहिए। 117. एएसि णं भंते ! जोधाणं नाणावरणिज्जस्स देसबंधगाणं, प्रबंधगाण घ कयरे कयरेहितो० ? जाव प्रप्याबहुगे जहा तेयगस्स / [117 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर के इन देशबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [117 उ ] गौतम ! जिस प्रकार तैजसशरीरप्रयोगबंध के देशबन्धकों एवं प्रबन्धकों के अल्पबहुत्व के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए / 118. एवं प्राउयवज्ज जाव अंतराइयस्स / [118] इसी प्रकार आयुष्य को छोड़ कर यावत् अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबंध के देशबन्धकों और अबन्धकों के अल्पबहुत्व के विषय में कहना चाहिए / 116. अाउथस्स पुच्छा। गोयमा! सबथोवा जीवा पाउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, प्रबंधगा संखेज्जगुणा। [116 प्र.] भगवन् ! आयुष्य कार्मण शरीर-प्रयोगबंध के देशबन्धक और प्रबन्धक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org