________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [363 [106 प्र.] भगवन् ! उच्चगोत्र-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [106 उ.] गौतम ! जातिमद न करने से, कुलमद न करने से, बलमद न करने से, रूपमद न करने से, तपोमद न करने से, श्रुतमद (ज्ञान का मद) न करने से, लाभमद न करने से और ऐश्वर्यमद न करने से तथा उच्चगोत्र-कार्मण-शरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगवन्ध होता है। 110. नीयागोयकम्मासरीर० पुच्छा। गोयमा ! जातिमदेणं कुलमदेणं बलमदेणं जाव इस्सरियमदेणं णीयागोयकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे। [110 प्र.] भगवन् ! नीचगोत्र-कार्मण-शरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [110 उ.] गौतम ! जातिमद करने से, कुलमद करने से, बलमद करने से, रूपमद करने से, तपोमद करने से, श्रुतमद करने से, लाभमद करने से और ऐश्वर्यमद करने से तथा नीचगोत्र-कार्मणशरीर-प्रयोग नामकर्म के उदय से नीचगोत्र-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध होता है। 111. अंतराइयकम्मासरीर० पुच्छा। गोयमा ! दाणंतराएणं लाभंतराएणं भोगतराएणं उवभोगंतराएणं बोरियंतराएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं अंतराइयकम्मासरीरध्ययोगबंधे। [111] भगवन् ! अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [111] गौतम ! दानान्तराय से, लाभान्तराय से, भोगान्तराय से, उपभोगान्तराय से और वीर्यान्तराय से, तथा अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगनामकर्म के उदय से अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है। 112. [1] गाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कि देसबंधे सवबंधे ? गोयमा ! देसबंधे, णो सव्यबंधे। [112-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है अथवा सर्वबन्ध है ? [112-1 उ.] गौतम ! वह देशबन्ध है, सर्वबन्ध नहीं है / [2] एवं जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पनोगबंधे। [112-2] इसी प्रकार यावत् अन्तराय-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध तक जानना चाहिए। 113. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--प्रणाईए सपज्जवसिए, अणाईए अपज्जयसिए वा, एवं जहा तेयगसरीरसंचिट्ठणा तहेव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org