________________ 392] [ व्याख्याप्राप्तिसून 105. मणुस्सम्राउयकम्मासरीर० पुच्छा। गोयमा ! पगइमद्दयाए पगाविणीययाए साणकोसयाए प्रमच्छरिययाए मणुस्साउयकम्मा० जाव पयोगबंधे। [105 प्र.] भगवन् ! मनुष्यायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [105 उ.] गौतम ! प्रकृति की भद्रता से, प्रकृति की विनीतता (नम्रता) से, दयालुता से, अमत्सरभाव से तथा मनुष्यायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से, मनुष्यायुष्य-कार्मणशरीर. प्रयोगबन्ध होता है / 106. देवाउयकम्मासरीर० पुच्छा / गोयमा ! सरागसंजमेणं संजमासजमेणं बालतवोकम्मेणं अकामनिज्जराए देवाउयकम्मासरीर० जाय पयोगबंधे। [१०६-प्र.] भगवन् ! देवायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [१०६-उ.] गौतम ! सराग-संयम से, संयमासंयम (देशविरति) से, बाल (अज्ञानपूर्वक) तपस्या से तथा अकामनिर्जरा से, एवं देवायुष्य-कार्मणशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से, देवायुष्यकार्मणशरीर-प्रयोगवन्ध होता है। 107. सुभनामकम्मासरीर० पुच्छा / गोयमा ! काय उज्जुययाए भावुज्जुययाए भासुज्जुययाए अविसंवादणजोगेणं सुभनामकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे। [107 प्र.] भगवन् ! शुभनाम-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [107 उ.] गौतम ! काया की ऋजुता (सरलता) से, भावों की ऋजुता से, भाषा की ऋजुता (सरलता) से तथा अविसंवादनयोग से एवं शुभनाम-कार्मणशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से शुभनाम-कार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है। 108. असुभनामकम्मासरीर० पुच्छा / गोयमा ! कायमणज्जुययाए भावप्रणुज्जुययाए भासप्रणुज्जुययाए विसंवायणाजोगेणं असुभनामकम्मा० जाव पयोगबंध। [108 प्र.] भगवन् ! अशुभनाम-कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [108 उ.] गौतम ! काया की वक्रता से, भावों की वक्रता से, भाषा को वक्रता (अनृजुता) से तथा विसंवादन-योग से एवं अशुभनाम-कार्मणशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से अशुभनामकार्मणशरीर-प्रयोगबन्ध होता है। 106. उच्चागोयकम्मासरीर० पुच्छा। गोयमा ! जातिग्रमदेणं कुलप्रमदेणं बलप्रमदेणं रूवामदेणं तवनमदेणं सुयश्रमदेणं लामअमदेणं इस्सरियप्रमदेणं उच्चागोयकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org