________________ 38. ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तेजसशरीरप्रयोगबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुनों से निरूपण 60. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णते? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदिय०, तेइंदिय०, जाव पंचिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे / [10 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [90 उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-एकेन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबन्ध, द्वीन्द्रिय-तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध, त्रीन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबन्ध, चतुरिन्द्रिय-तेजसशरीरप्रयोगबन्ध और पंचेन्द्रिय-तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध / 61. एगिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णते? एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा प्रोगाहणसंठाणे जाव पज्जत्तसव्वसिद्ध अणुत्तरोषवाइय. कप्पातीयवेमाणियदेवचिदियतेयासरीरप्पयोगबंध य अपज्जत्तसन्यसिद्धप्रणुत्तरोववाइय० जाव बंधे य। [91 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [61 उ.] गौतम! इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा जैसे—(प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें) अवगाहनासंस्थानपद में भेद कहे हैं, वैसे यहाँ भी यावत्---पर्याप्त-सर्वार्थ सिद्ध-अनुत्तरोपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध और अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध; यहाँ तक कहना चाहिए / 62. तेयासरीरप्पयोगबंध णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा! बीरियसजोगस हव्वयाए जाव प्राज्यं वा पडुच्च तेयासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तेयासरीरप्पयोगबंधे। [62 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [९२-उ.] गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता, यावत् आयुष्य के निमित्त से, तथा तैजस शरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से तैजस शरीर-प्रयोगबन्ध होता है / 63. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कि देसबंधे सव्वबंधे ? गोयमा! देसबंधे, नो सव्वबंधे। [13 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध होता है, अथवा सर्वबन्ध होता है ? [93 उ.] गौतम ! देशबन्ध होता है, सर्वबन्ध नहीं होता। 64. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालमो केचिरं होइ ? गोयमा ! दुविहे पण्णते, तं जहा-~-प्रणाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org