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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [385 उत्पन्न होता है, तब प्रथम समय में सर्वबन्धक होता है। इसीलिए इसके सर्वबन्धक का जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त अधिक 10 हजार वर्ष होता है / मानतकल्प का अठारह सागरोपम की स्थिति वाला कोई देव, उत्पत्ति के प्रथम समय में सर्वबन्धक होता है। वहाँ से च्यव कर वर्षपृथक्त्व (दो वर्ष से नौ वर्ष तक) आयुष्यपर्यंत मनुष्य में रह कर पुन: उसी प्रानतकल्प में देव होकर प्रथम समय में सर्वबन्धक होता है / इसलिए सर्वबन्ध का जघन्य अन्तर वर्षपृथक्त्व-अधिक 18 सागरोपम का होता है / अनुत्तरौषपातिक देवों में सर्वबन्ध और देशबन्ध का अन्तर संख्यात सागरोपम है क्योंकि वहाँ से ज्यवकर जीव अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण नहीं करता। इसके अतिरिक्त वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध के देशबन्ध और सर्वबन्ध का अन्तर मूलपाठ में बतलाया गया है, वह सुगम है। उसकी घटना स्वयमेव कर लेनी चाहिए। वैकियशरीर के देश-सर्वबन्धकों का अल्पवहत्य-क्रियशरीरप्रयोग के सर्वबन्धक जीव सबसे अल्प हैं, क्योंकि उनका काल अल्प है। उनसे देशबन्धक असंख्यातगुणे हैं ; क्योंकि सर्वबन्धकों की अपेक्षा देशबन्धकों का काल असंख्यातगुणा है। उनसे वैक्रियशरीर के प्रबन्धक जीव अनन्तगुणे इसलिए हैं कि सिद्धजीव और वनस्पतिकायिक आदि जीव, जो वैक्रियशरीर के प्रबन्धक हैं, उनसे अनन्तगुणे हैं।' आहारकशरीरप्रयोगबन्ध का विभिन्न पहलुओं से निरूपण---- 83. पाहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते। [83 प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर-प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [83 उ.] गौतम ! आहारकशरीर-प्रयोगबन्ध एक प्रकार का (एकाकार) कहा गया है / 84. [1] जइ एमागारे पण्णत्ते कि मगुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे ? कि अमणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे ? गोयमा! मणुस्साहारगसरीरप्पयोगधे, नो अमणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे / [84-1 प्र.] भगवन् ! पाहारकशरीर-प्रयोगबन्ध एक प्रकार का कहा गया है, तो वह मनुष्यों के होता है अथवा अमनुष्यों (मनुष्यों के सिवाय अन्य जीवों) के होता है ? [84-1 उ.] गौतम ! मनुष्यों के आहारकशरीरप्रयोगबन्ध होता है, अमनुष्यों के नहीं होता। [2] एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे जाय इड्डिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमिगगब्भवतियमणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे, णो अणिढिपत्तपमत्त जाक पाहारगसरीरप्पयोगबंधे / वृत्ति, पत्रांक 406 से 409 तक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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