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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [381 [71 प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कालत: कितने काल का होता है ? [71 उ.] गौतम! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल है-अनन्त उत्सपिणी-अवपिणी यावत्-आवलिका के असंख्यातवें भाग के समयों के बराबर पुद्गलपरावर्तन तक रहता है / इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जान लेना चाहिए / 72. वाउक्काइयवेउब्वियसरीर० पुच्छा। गोयमा! सन्धबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमस्स असंखेज्जइमागं / एवं देसबंधतरं पि। [72 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [72 उ.] गौतम ! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग होता है / इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जान लेना चाहिए / 73. तिरिक्खजोणियाँचदियवे उब्वियसरीरप्पयोगबंधंतरं० पुच्छा। गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणे पुत्र कोडीयुहत्तं / एवं देसबंधंतरं पि। [73 प्र. भगवन् ! तियंञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [73 उ.] गौतम ! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूत्तं और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व का होता है / इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जान लेना चाहिए / 74. एवं मणूसस्स वि। [74] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी (पूर्ववत्) जान लेना चाहिए। 75. जीवस्स गं भंते ! वाउकाइयत्ते नोवाउकाइयत्ते पुणरवि वाउकाइयत्ते वाउकाइयएगिदियवेउब्विय० पुच्छा। गोयमा ! सव्वबंधतरं जहन्नेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं अणतं कालं, वणस्सइकालो। एवं देसबंधतरं पि। [75 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक अवस्थागत जीव (वहाँ से मर कर) वायुकायिक के सिवाय अन्य काय में उत्पन्न हो कर रहे, और फिर वह वहाँ से मर कर पुनः वायुकायिक जीवों में उत्पन्न हो तो उसके वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [75 उ.] गौतम ! उसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्यत: अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल-वनस्पतिकाल तक होता है / इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जान लेना चाहिए / 76. [1] जीवस्स गं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयत्ते णोरयणप्पभापुढवि० पुच्छा। गोयमा! सव्वबंधतरं जहन्नेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। देसबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं; उक्कोसेणं अणंतं कालं, वणस्सइकालो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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