________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [ 379 61. [1] एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया / एवं जाव अच्चुय० / [61-1] इसी प्रकार (रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकों के समान) सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों यावत्-अच्युत-कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों तक के विषय में जानना चाहिए। [2] गेवेज्जकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव / [61-2] अवेयक-कल्पातीत वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार जान लेना चाहिए। [3] अणुत्तरोववाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव / [61-3] अनुत्तरौषपातिक-कल्पातीत-वैमानिक देवों के विषय में भी पूर्ववत् जान लेना चाहिए। 62. वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कि देशबंधे, सब्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे वि, सन्धबंधे वि। [62 प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है अथवा सर्वबन्ध है ? [62 उ.] गौतम ! वह देशबन्ध भी है, सर्वबन्ध भी है। 63. वाउक्काइयगिदिय० ? एवं चेव / [63 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है अथवा सर्वबन्ध है ? [63 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए / 64. रयणप्पभायुढविनेरइय० ? एवं चेव / [64 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध देशबन्ध है या सर्वबन्ध ? [64 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए / 65. एवं जाव अणुत्तरोववाइया / [65] इसी प्रकार यावत्-अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों तक समझना चाहिए। 66. वेउब्बियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालमो केवच्चिर होइ ? गोयमा ! सव्वबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया। देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई। [66 प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध, कालतः कितने काल तक रहता है ? [66 उ.] गौतम ! इसका सर्वबन्ध जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो समय तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org