________________ 375] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [55-1 उ.] गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता यावत्--आयुष्य की अपेक्षा से तथा रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध होता है / [2] एवं जाव अहेसत्तमाए। [55-2] इसी प्रकार यावत्-अधःसप्तम नरक-पृथ्वी तक कहना चाहिए / 56. तिरिक्खजोणियपंचिदियवेउब्वियसरीर० पुच्छा। गोयमा ! बीरिय० जहा वाउक्काइयाणं / [56 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियवैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [56 उ.] गौतम ! सवीर्यता यावत्-पआयुष्य और लब्धि को लेकर तथा तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-शरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से वह होता है / 57. मणुस्सपचिदियवेउब्धिय ? एवं चेव। [57 प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [57 उ.] गौतम ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) जान लेना चाहिए ! 58. [1] असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिदियवेउध्विय० ? जहा रयणपभापुढविनेरइया / [58-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [58-1 उ.] गौतम ! इसका कथन भी रत्नप्रभापृथ्वीनरयिकों की तरह समझना चाहिए / [2] एवं जाब थणियकुमारा। [58-2] इसी प्रकार यावत्--स्तनितकुमार-भवनवासी देवों तक कहना चाहिए। 56. एवं वाणमंतरा। [56] इसी प्रकार वाण-व्यन्तर देवों के विषय में भी रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिकों के समान जानना चाहिए। 60. एवं जोइसिया। [60] इसी प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org