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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [373 46. जहा पुढविक्काइयाणं एवं वणस्सइकाइयवज्जाणं जाव मणुस्साणं / वणस्सइकाइयाणं दोणि खुड्डाई एवं चेव; उक्कोसेणं असंखिज्ज कालं, असंखिज्जाम्रो उस्सप्पिणि-श्रोसप्पिणीम्रो कालो, खेत्तमो असंखेज्जा लोगा / एवं देसबध तरं पि उक्कोसेणं पुढवीकालो। [49] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों का प्रयोगबन्धान्तर कहा गया है, उसी प्रकार वनस्पतिकायिक जोवों को छोड़ कर यावत् मनुष्यों के प्रयोगबन्धान्तर तक (सभी जीवों के विषय में) समझना चाहिए। वनस्पतिकायिक जीवों के सर्ववन्ध का अन्तर जघन्यतः काल की अपेक्षा से तीन समय कम दो क्षुल्लकभव-ग्रहणकाल, और उत्कृष्टत: असंख्येयकाल है, अथया असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी है, क्षेत्रत: असंख्येय लोक है। इसी प्रकार देशबन्ध का अन्तर भी जघन्यतः समयाधिक क्षल्लकभवग्रहण तक का है, और उत्कृष्टत: पृथ्वीकायिक स्थितिकाल तक है, (अर्थात्असंख्येय उत्सपिणी-अवसर्पिणी काल यावत् असंख्येय लोक है।) 50. एएसि णं भंते ! जीवाणं ओरालियसरीरस्स देसबधगाणं सवबंधगाणं प्रबंधगाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्बत्थोवा जीवा पोरालियसरीरस्स सवबधगा प्रबधगा विसेसाहिया, देसबंधगा प्रसंखेज्जगुणा। [50 प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर के इन देशबन्धक, सर्वबन्धक और प्रबन्धक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहत (अधिक), तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [50 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े (अल्प) औदारिक शरीर के सर्वबन्धक जीव हैं, उनसे प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, और उनसे असंख्यात गुणे देशबन्धक जीव हैं। विवेचन शरीरप्रयोगबन्ध के प्रकार एवं प्रौदारिकशरीरप्रयोगबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण-प्रस्तुत 27 सूत्रों (सू. 24 से 50 तक) में शरीरप्रयोगबन्ध के विषय में निम्नोक्त तथ्यों का निरूपण किया गया है 1. औदारिक आदि के भेद से शरीरप्रयोगबन्ध 5 प्रकार का है। 2. एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक औदारिक शरीरप्रयोगबन्ध पांच प्रकार का है। 3. एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक 5 प्रकार के हैं। 4. द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्याप्त, अपर्याप्त गर्भज मनुष्य तक औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध समझना चाहिए। 5. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध वीर्य, योग, सद्व्य एवं प्रमाद के कारण कर्म, योग, भव और आयुष्य को अपेक्षा औदारिकशरीरप्रयोग-नामकर्म के उदय से होता है। 6. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध देशबन्ध भी है, सर्वबन्ध भी। 7. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध की कालतः स्थिति की सीमा / 8. समस्त जीवों के सर्व-देशबन्ध की अपेक्षा कालतः औदारिकशरीरबन्ध के अन्तर-काल की सीमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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