________________ 370] [व्याख्याप्रज्ञाप्तसूत्र 38. एगिदियोरालियसरीरप्पयोगधे गं भंते ! कालमो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सवध एक्कं समयं; देसबधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समऊणाई। [38 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध कालत: कितने काल तक रहता है ? [38 उ.] गौतम ! सर्वबन्ध एक समय तक रहता है और देशबन्ध जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः एक समय कम 22 हजार वर्ष तक रहता है। 36. पुढविकाइयएगिदिय० पुच्छा। ___ गोयमा ! सव्वधे एक्कं समयं, देसबधे जहन्नेणं खड्डागभवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समऊणाई। वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध कालत: कितने काल तक रहता है ? [39 उ.] गौतम ! (वह) सर्वबन्ध एक समय तक रहता है और देशबन्ध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लक भव-ग्रहण पर्यन्त तथा उत्कृष्टतः एक समय कम 22 हजार वर्ष तक रहता है। 40. एवं सन्वेसि सन्यबंधो एक्कं समयं, देसबंधो जेसि नत्थि वेउब्वियसरीरं तेसि जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूर्ण, उक्कोसेणं जा जस्स उषकोसिया ठिती सा समऊणा कायव्वा / जेसि पुण अस्थि वेउब्वियसरीरं तेसि देसबधो जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समऊणा कायब्वा जाव मणुस्साणं देसबधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिषिण पलिओवमाइं समयूणाई। [40] इस प्रकार सभी जीवों का सर्वबन्ध एक समय तक रहता है। जिनके वैक्रियशरीर नहीं है, उनका देशबन्ध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहण-पर्यन्त और उत्कृष्टत: जिस जीव की जितनी उत्कृष्ट आयुष्य-स्थिति है, उससे एक समय कम तक रहता है। जिनके वैक्रिय शरीर है, उनके देशबन्ध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः जिसकी जितनी (आयुष्य) स्थिति है, उसमें से एक समय कम तक रहता है। इस प्रकार यावत् मनुष्यों का देशबन्ध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक जानना चाहिए। 41. प्रोरालियसरीरबधंतरं णं भंते ! कालो केवच्चिरं होइ / गोयमा ! सबबधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवरगहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई पुवकोडिसमयाहियाई। देसबंधतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं तिसमयाहियाई। [41 प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर के बन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [41 उ.] गौतम ! इसके सर्वबन्ध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव-ग्रहणपर्यन्त है और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि तथा तेतीस सागरोपम है / देशबन्ध का ग्रन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org