________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९ ] [369 32. मणुस्सपंचिदियोरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा ! वीरियसजोगसद्दम्वयाए पमादपच्चया जाव आउयं च पडुच्च मणुस्सपंचिदियपोरालियसरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं मगुस्सपंचिदियोरालियस रोरपनोगबधे / [32 प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगवन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [32 उ.] गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता से, तथा प्रमाद के कारण यावत् आयुष्य की अपेक्षा से एवं मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रौदारिकरारीर-नामकर्म के उदय से 'मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध' होता है / 33. पोरालियसरीरप्पयोगबधणं भंते ! कि देसबधे, सबबंध? गोयमा ! देसबध वि सम्वबध वि / [33 प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध या सर्वबन्ध है ? [33 उ.] गौतम ! वह देशबन्ध भी है, और सर्वबन्ध भी है। 34. एगिदियोरालियसरीरपयोगबंध णं भंते ! कि देतबंध सबबधे? एवं चेव। [34 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है ? [34 उ.] गौतम ! पूर्वोक्त कथनानुसार यहाँ भी जानना चाहिए / 35. एवं पुढविकाइया [35] इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध के विषय में समझना चाहिए। 36. एवं जाव मणुस्सपंचिदियोरालियसरीरप्पयोगबध णं भंते ! कि देसबधे, सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबध वि, सम्बबंध वि / [36] इसी प्रकार यावत-[प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरोर-प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है ? [उ.] गौतम ! वह देशबन्ध भी है और सर्वबन्ध भी है'–यहाँ तक कहना चाहिए। 37. ओरालियसरीरप्पयोगबघ पां भंते ! कालमो केवच्चिरं होइ ? गम्यमा ! सम्बबंध एक्कं समयं; देसबंध जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिणि पलियोवमाइं समयूणाई। [37 प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध काल की अपेक्षा, कितने काल तक रहता है ? [37 उ.] गौतम ! सर्वबन्ध एक समय तक रहता है और देशबन्ध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक रहता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org