________________ 368] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वक्कंतियमणुस्सचिदियोरालियसरीरप्पयोगधे य अपज्जत्तगम्भवक्कंतियमणूसपंचिदियोरालियसरीरप्पयोगधे य। [26 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिक-शरीरप्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [26 उ.] गौतम ! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार--पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध इत्यादि / इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा जैसे प्रज्ञापनासूत्र के (इक्कीसवें) 'अवगाहना-संस्थान-पद' में औदारिक शरीर के भेद कहे गए हैं, वैसे यहाँ भी यावत्--'पर्याप्त-गर्भज-मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध और अपर्याप्त गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध' तक कहना चाहिए। 27. पोरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? गोयमा ! बीरियसजोगसद्दब्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पयोगनामकम्मस्स उदएणं पोरालियसरीरप्पयोगबधे / [27 प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? 27 उ.] गौतम ! सवीर्यता, संयोगता और सद्रव्यता से, प्रमाद के कारण, कर्म, योग, भव और आयुष्य प्रादि हेतुओं की अपेक्षा से औदारिक-शरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध होता है। 28. एगिदियोरालियसरीरप्पयोगधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव / [28 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय औदारिक-शरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [28 उ.] गौतम ! पूर्वोक्त-कथनानुसार यहाँ भी जानना चाहिए। 26. पुढविककाइयएगिदियोरालियसरीरप्पयोगबध एवं चेव / [26 प्र.] इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध के विषय में कहना चाहिए। 30. एवं जाव वणस्सइकाइया / एवं बेइंदिया / एवं तेइंदिया / एवं चरिदिया। [30] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध तथा द्वीन्द्रियश्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध तक कहना चाहिए / 31. तिरिक्खजोणियपंचिदियोरालियसरीरप्पयोगबघेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? एवं चेव / [31 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? [31 उ.] गौतम ! (इस विषय में भी) पूर्वोक्त कथनानुसार जानना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org