________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] 365 18. से कि तं साहणणाबंधे ? साहणणाबंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–देससाहणणाबंधे य सव्वसाहणणाबंधे य / [18 प्र.] भगवन् ! संहननबन्ध किसे कहते हैं ? / [18 उ ] गौतम ! संहननबन्ध दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार----(१) देशसंहननबन्ध और (2) सर्वसंहननबन्ध / 16. से कि तं देससाहणणाबंधे ? देससाहणणाबंधे, जं णं सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणिया-लोही-लोहकडाह-कडच्छुप-प्रासण-सयण-खंभ-भंड-मत्त-उवगरणमाईणं देससाहणणाबंधे समुपज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज कालं / से तं देससाहणणाबंधे / {16 प्र.] भगवन् ! देशसंहननबन्ध किसे कहते हैं ? [16 उ.] गौतम ! शकट (गाड़ी), रथ, यान (छोटी गाड़ी), युग्य वाहन (दो हाथ प्रमाण वेदिका से उपशोभित जम्पान =पालखी), गिल्लि (हाथी को अम्बाड़ी), थिल्लि (पलाण), शिविका (पालखी), स्यन्दमानी पुरुष प्रमाण वाहन विशेष, म्याना), लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छो, (चमचा बड़ा या छोटा), प्रासन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड (मिट्टी के बर्तन), पात्र, नाना उपकरण आदि पदार्थों के साथ जो सम्बन्ध सम्पन्न होता है, वह देशसंहननबन्ध है। वह जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त तक और उत्कृष्टत: संख्येय काल तक रहता है। यह है देशसंहननबन्ध का स्वरूप / 20. से किं तं सव्वसाहणणाबंधे ? सव्वसाहणणाबंधे, से णं खीरोदगमाईणं / से तं सव्वसाहणणाबधे। से तं साहणणाबंधे / से तं अल्लियावणबंधे। [20 प्र.] भगवन् ! सर्वसंहननबन्ध किसे कहते हैं ? [20 उ.] गौतम ! दूध और पानी आदि की तरह एकमेक हो जाना सर्वसंहननबन्ध कहलाता है / इस प्रकार सर्वसंहननबन्ध का स्वरूप है / यह आलीनबन्ध का कथन हुआ। 21. से कि तं सरीरबंधे ? सरीरबंधे दुविहे पण्णते, तं जहा-पुवप्पयोगपच्चइए य पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए / [21 प्र.] भगवन् ! शरीरबन्ध किस प्रकार का है ? [21 उ.] गौतम ! शरीरबन्ध दो प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-(१) पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक और (2) प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक / 22. से किं तं पुवप्पप्रोगपच्चइए ? पुन्वपओगपच्चइए, जंणं नेरइयाणं संसारत्थाणं सधजीवाणं तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु समोहनमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पज्जइ / से तं पुत्वपयोगपच्चइए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org