SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 965
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 364] व्याख्याप्राप्तसूत्र [15 उ.] गौतम ! श्लेषणाबन्ध इस प्रकार का है जो कुडयों (भित्तियों) का, कुट्टिमों (प्रांगन के फर्श) का, स्तम्भों का, प्रासादों का, काष्ठों का, चर्मों (चमड़ों) का, घड़ों का, वस्त्रों का, और चटाइयों (कटों) का; चूना, कीचड़, श्लेष (गोंद आदि चिपकाने वाले द्रव्य, अथवा वज्रलेप), लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बन्ध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबन्ध कहलाता है / यह बन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है / यह श्लेषणाबन्ध का कथन हुआ। 16. से कि तं उच्चयबंधे ? उच्चयबंधे, जं णं तणरासोण वा कटरासीण वा पत्तरासीण वा तुसरासीण वा भुसरासीण वा गोमयरातीण वा अवगररासीण वा उच्चएणं बंधे समप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमहत्त, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं / से तं उच्चयबंधे। [16 प्र.] भगवन् ! उच्चयबन्ध किसे कहते हैं ? [16 उ.] गौतम ! तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, तुषराशि, भूसे का ढेर, गोबर (या उपलों) का ढेर अथवा कूड़े-कचरे का ढेर, इन का ऊँचे ढेर (पुज-संचय) रूप से जो बन्ध सम्पन्न होता है, उसे 'उच्चयबन्ध' कहते हैं / यह बन्ध जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है। इस प्रकार उच्चयबन्ध का कथन किया गया है। 17. से कि तं समुच्चयबंधे ? समुच्चयबंधे, जं गं अगड-तडाग-नदी-दह-वावी-पुक्खरणी-दोहियाणं गुजालियाणं सरा सरपंतिमाणं सरसरपंतियाणं बिलपंतियाणं देवकुल-सभा-पवा-यूभ-खाइयाणं फरिहाणं पागार-ऽट्टालगचरिय-दार-गोपुर-तोरणाणं पासाय-घर-सरण-लेग-प्रावणाणं सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्महमहापहमादीणं छुहा-चिखल्ल-सिलेससमुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं / से तं समुच्चयबंधे। [17 प्र.] भगवन् ! समुच्चयबन्ध किसे कहते हैं ? [17 उ.] गौतम ! कुमा, तालाब, नदी, द्रह, वापी (बावड़ी), पुष्करिणी (कमलों से युक्त वापी), दीपिका, गुजालिका, सरोवर, सरोवरों की पंक्ति, बड़े सरोवरों की पंक्ति, बिलों की पंक्ति, देवकुल (मन्दिर), सभा, प्रपा (प्याऊ), स्तूप, खाई, परिखा (परिधा), प्रांकार (किला या कोट), क (अटारी, किले पर का कमरा या गढ़), चरक (गढ़ और नगर के मध्य का मार्ग), द्वार गोपुर, तोरण, प्रासाद (महल), घर, शरणस्थान, लयन (गृहविशेष), आपण (दुकान), शृगाटक (सिंघाड़े के आकार का मार्ग), त्रिक (तिराहा), चतुष्क (चौराहा), चत्वरमार्ग, (चौपड़-बाजार का मार्ग), चतुर्मुख मार्ग और राजमार्ग (बड़ी और चौड़ी सड़क) आदि का चूना, (गीली) मिट्टी, कीचड़, एवं श्लेष (वज्रलेप आदि)के द्वारा समुच्चयरूप से जो बन्ध समुत्पन्न होता है, उसे 'समुच्चयबन्ध' कहते हैं। उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयकाल की है। इस प्रकार समुच्चयबन्ध का कथन पूर्ण हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy