________________ अष्टम शतक : उद्देशक-९] [ 363 तत्थ वि अंतिण्हं तिण्हं प्रणाईए अपज्जवसिए. सेसाणं साईए / तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं / तत्थ गंजे से साईए सपज्जवसिए से णं चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा- आलाधणबंध अल्लियावणबंध सरीरबंधे सरीरप्पयोगबंधे / [12 प्र.] भगवन् ! प्रयोगबन्ध किस प्रकार का है ? [12 उ.] गौतम ! प्रयोगबन्ध तीन प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-(१) अनादिअपर्यवसित, (2) सादि-अपर्यवसित अथवा (3) सादि-सपर्यवसित / इनमें से जो अनादि-अपर्यवसित है, वह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन-तीन प्रदेशों का जो बन्ध होता है, वह अनादि-अपर्यवसित बन्ध है। शेष सभी प्रदेशों का सादि (-अपर्यवसित) बन्ध है / इन तीनों में से जो सादि-अपर्यवसित बन्ध है, तथा इनमें से जो सादि-सपर्यवसित बन्ध है, वह चार प्रकारका कहा गया है / यथा-(१) पालापनबन्ध, (2) अल्लिकापन-(आलीन) बन्ध, (3) शरीरबन्ध और (4) शरीर-प्रयोग-बन्ध / 13. से कि तं पालावणबंध ? आलावणबंधे, जं गं तणभाराण वा कटुभाराण वा पत्तभाराण वा पलालभाराण वा वेल्ल. भाराण वा वेत्तलया-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दम्भमादिरहि आलावणबंधे समुप्पज्जइ; जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं / से तं पालावणबंधे। [13 प्र.] भगवन् ! पालापनबन्ध किसे कहते हैं ? [13 उ.] गौतम ! तृण (घास) के भार, काष्ठ के भार, पत्तों के भार, पलाल के भार और बेल के भार, इन भारों को बेंत की लता, छाल, वरत्रा (चमड़े की बनी मोटी रस्सी - बरत), रज्जु (रस्सी) बेल, कुश और डाभ (नारियल की जटा) आदि से बांधने से पालापनबन्ध समुत्पन्न होता है। यह बन्ध जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः संख्येय काल तक रहता है / यह आलापनबन्ध का स्वरूप है। 14. से कि तं अल्लियावणबंधे ? अल्लियावणबंधे चविहे पन्नत्ते, तं जहा--लेसणाबंधे उच्चयबधे समुच्चयबंधे साहणणाबंधे / [14 प्र.] भगवन् ! अल्लिकापन (प्रालीन) वन्ध किसे कहते हैं ? [14 उ.] गौतम ! आलीनबन्ध चार प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार–श्लेषणाबन्ध, उच्चयबन्ध, समुच्चयबन्ध और संहननबन्ध / 15. से कि तं लेसणाबंध? लेसणाबंधे, जं णं कुड्डाणं कुट्टिमाणं खंभाणं पासायाणं कट्ठाणं चम्माणं घडाणं पडाणं कडाणं छुहा-चिखल्ल-सिलेस-लक्ख-महुसित्थमाइहि लेसणएहिं बंध समुपज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। से तं लेसणाबंधे। [15 प्र.] भगवन् ! श्लेषणाबन्ध किसे कहते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org