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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८) [ 353 अधिक-से-अधिक एक साथ बीस परीषह, क्योंकि शीत और उष्ण, चर्या और निषद्या अथवा चर्या और शय्या ये दोनों परस्पर विरुद्ध होने से एक का ही एक समय में अनुभव होता है / षड्विधबन्धक सराग छमस्थ के 14 परीषह बताए गए हैं। वे मोहनीय कर्मजन्य 8 परीषहों के सिवाय समझने चाहिए। किन्तु उनमें वेदन हो सकता है 12 परीषहों का ही / पूर्वोक्त रीति से चर्या और शय्या, या चर्या और निषद्या अथवा शीत और उष्ण दोनों का एक साथ बेदन नहीं होता। एक वेदनीय कर्म के बन्धक छद्मस्थ वीतराग (ग्यारहवें-बारहवें गुणस्थानवर्ती) जीव के भी 14 परीषह मोहनीयकर्म के ८परीषहों को छोड़ कर) होते हैं, किन्तु वे वेदते हैं अधिक-से-अधिक 12 परीषह ही / तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगी भवस्थ केवलो एकविध बन्धक के और चौदहवें गुणस्थानवर्ती प्रबन्धक प्रयोगी भवस्थ केबली के एकमात्र वेदनीय कर्म के उदय से होने वाले 11 परीषह (जो कि पहले बताए गए हैं) होते हैं, किन्तु उनमें से एक साथ 6 का ही वेदन पूर्वोक्त रीत्या संभव है।' उदय, अस्त और मध्याह्न के समय में सूर्यों की दूरी और निकटता के प्रतिभास प्रादि की प्ररूपरगा 35. जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मतियमुहुतंसि मूले य दूरे य दोसंति, प्रथमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? हंता, गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उगमणमुहत्तंसि दूरे य तं चेव जाव प्रथमणमुहुत्तसि दूरे य मूले य दोसंति / [35 प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में क्या दो सूर्य, उदय के मुहूर्त (समय) में दूर होते हुए भी निकट (मूल में) दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त (समय) में निकट (मूल) में होते हुए दूर दिखाई देते हैं और अस्त होने के मुहूर्त (समय) में दूर होते हुए भी निकट (मूल में) दिखाई भी देते हैं ? 35 उ.] हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि यावत् अस्त होने के समय में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं। 36. जंबुद्दीवे गं भंते ! दोवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि य मज्झतियमुहत्तंसि य, प्रथमणमुहतंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं ? हंता, गोयमा ! जंबुद्दीवे गं दीवे सूरिया उग्गमण जाव उच्चत्तेणं / [36 प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न के समय में और अस्त होने के समय में क्या सभी स्थानों पर (सर्वत्र) ऊँचाई में सम हैं ? [36 उ.] हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में रहे हुए दो सूर्य * यावत् सर्वत्र ऊँचाई में सम हैं। 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 389 से 392 तक (ख) तत्वार्थसूत्र अ. 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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