________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८] [ 351 [32 उ.] गौतम ! उसके चौदह परीपह कहे गए हैं; किन्तु वह एक साथ बारह परीषह वेदता है / जिस समय शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता; और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय शय्यापरोषह का वेदन नहीं करता; और जिस समय शय्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता। 33. [1] एक्कविहबंधगस्स णं भंते ! वीयरागछउमत्थस्स कति परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं चेव जहेव छविहबंधगस्स / [33-1 प्र.] भगवन् ! एकविधबन्धक वीतराग-छद्मस्थ जीव के कितने परीषह कहे [33-1 उ.] गौतम ! षड्विधबन्धक के समान इसके भी चौदह परीषह कहे गए हैं, किन्तु बह एक साथ बारह परीषहों का वेदन करता है / जिस प्रकार षड्विधबन्धक के विषय में कहा है, उसी प्रकार एकविधबन्धक के विषय में समझना चाहिए / [2] एगविहबंधगस्स णं भंते ! सजोगिभवत्थकेवलिस कति परीसहा पण्णता ? गोयमा ! एक्कारस परोसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेह / सेसं जहा छविहबंधगस्स। [33-2 प्र.] भगवन् ! एकविधबन्धक सयोगी-भवस्थ केवली के कितने परीषह कहे गए हैं ? 133-2 उ.] गौतम ! इसके ग्यारह परीषह कहे गए हैं, किन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता है / शेष समग्र कथन षड्विधबन्धक के समान समझ लेना चाहिए। 34. प्रबंधगस्त णं भंते ! अजोगिभवत्थ केलिस्स कति परीसहा पण्णता? गोयमा ! एषकारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ, जं समयं सीयपरीसह वेदेति नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेति नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ / जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं सेज्जापरीसहं वेदेति, जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेई। [३४-प्र.] भगवन् ! प्रबन्धक अयोगी-भवस्थ-केवली के कितने परीषह कहे गए हैं ? [34 उ. गौतम ! उसके ग्यारह परीषह कहे गए हैं। किन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता है / क्योंकि जिस समय शीतपरीषह का वेदन करता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता; और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्या-परीषह का वेदन करता है, उस समय शय्या-परीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय शय्या-परीषह का वेदन करता है, उस समय चर्या-परीषह का वेदन नहीं करता। विवेचन-~-बावीस परीषहों की अष्टकर्मों में समावेश की तथा सप्तविधबन्धक प्रादि के परीषहों को प्ररूपणा प्रस्तुत 12 सूत्रों (सू. 23 से 34 तक) में बावीस परीषहों के सम्बन्ध में दो तथ्यों का निरूपण किया गया है - (1) किस कर्म में कितने परीषहों का समावेश होता है ? अर्थात् किस-किस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org