________________ 350 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 26. अंतराइए णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे अलाभपरीसहे समोयरइ। [26 प्र.] भगवन् ! अत्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [26 उ.] गौतम ! अन्तरायकर्म में एक अलाभपरीषह का समवतार होता है / 30. सत्तविहबंधगस्स अंभंते ! कति परीसहा पण्णता ? गोयमा ! बाबीसं परीसहा पण्णत्ता, वीसं पुण वेदेइ-जं समयं सोयपरीसहं वेदेति णोतं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरोसहं वेदेइ णो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ / जं समय चरियापरीसहं वेदेति णो तं समयं निसोहियापरीसहं वेदेति, जं समयं निसोहियापरीसहं वेदेइ णो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ / 30 प्र.] भगवन् ! सप्तविधबन्धक (सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले) जीव के कितने परीषह बताए गए हैं ? [30 उ.] गौतम ! उसके बावीस परीषह कहे गए हैं। परन्तु वह जीव एक साथ बीम परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता; और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता / तथा जिस समय चर्यापरीषह का बेदन करता है, उस समय निषद्यापरीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय निषद्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता। 31. अदविहबंधगस्स णं भंते ! कति परीसहा पण्णता ? गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता० एवं (सु. 30) अविहबंधगस्स / [31 प्र.] भगवन् ! आठ प्रकार कर्म बाँधने वाले जीव के कितने परीषह कहे गए हैं ? [31 उ.] गौतम ! उसके बावीस परीषह कहे गए हैं / यथा-क्षुधापरीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, दशमशक-परीषह यावत् अलाभपरीषह। किन्तु वह एक साथ बीस परीषहों को बेदता है। जिस प्रकार सप्तविधबन्धक के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार (सू. 30 के अनुसार) अष्टविधबन्धक के विषय में भी कहना चाहिए। 32. छविहबंधगस्स शं भंते ! सरागछउमत्थस्स कति परीसहा पण्णता? गोयमा ! चोइस परीसहा पण्णत्ता, बारस पुण वेदेइ-जं समयं सोयपरोसहं वेदेइ णो तं समय उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ / जं समयं चरियापरीसहं वेदेति गो तं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ, जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेति णो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। 32 प्र.] भगवन् ! छह प्रकार के कर्म बांधने वाले सराग छद्मस्थ जीव के कितने परीषह कहे गए हैं ? . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org