________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८ | [349 [25 प्र. भगवन् ! इन बावीस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समवतार (समावेश) हो जाता है ? [25 उ.) गौतम ! चार कर्मप्रकृतियों में इन 22 परीषहों का समवतार होता है / वे इस प्रकार हैं-ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय / 26. नाणावरणिज्जे गं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तं जहा-पण्णापरीसहे नाणपरीसहे (अन्नाण परीसहे) य / [26 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [26 उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म में दो परीषहों का समवतार होता है। यथा--प्रज्ञापरीषह और ज्ञानपरीषह (अज्ञानपरीषह)। 27. वेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परोसहा समोयरंति ? गोयमा ! एक्कारस परीसहा समोयरंति, तं जहा पंचेव प्राणुयुधी, चरिया, सेज्जा, वहे य, रोगे य / तणफास जल्लमेव य एक्कारस वेदणिज्जम्मि // 1 // [27 प्र.] भगवन् ! वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [27 उ.] गौतम ! वेदनीय कर्म में ग्यारह परीषहों का समवतार होता है। वे इस प्रकार हैं.-अनुक्रम से पहले के पांच परीषह (क्षुधापरीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह और दंश-मशकपरीषह), चर्यापरीषह, शय्यापरीषह, वधपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह और जल्ल (मल) परीषह / इन ग्यारह परीषहों का समवतार वेदनीय कर्म में होता है। 28. [1] सणमोहणिज्जे गं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे दंसणपरोसहे समोयरइ / [28-1 प्र.] भगवन् ! दर्शन-मोहनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [28-1 उ.] गौतम ! दर्शनमोहनीय कर्म में एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है। [2] चरित्तमोहणिज्जे गं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! सत परीसहा समोयरंति, तं जहा अरती अचेल इत्थी निसोहिया जायणा य प्रक्कोसे / सक्कारपुरक्कारे चरितमोहम्मि सत्तेते // 2 // [28-2 प्र.] भगवन् ! चारित्रमोहनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? [28.2 3 ] गौतम ! चारित्रमोहनीय कर्म में सात परीषहों का समवतार होता है। वह इस प्रकार - अतिपरीषह, अचेलपरीषह, स्त्रीपरीषह, निषद्यापरीषह, याचनापरीषह, आक्रोशपरीषह और सत्कार-पुरस्कारपरीषह। इन सात परीषहों का समवतार चारित्रमोहनीय कर्म में होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org