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________________ 346] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र करता, अत: यह कर्म नहीं बांधता और भविष्य में उपशम श्रेणी या क्षपक श्रेणी करेगा, तब बांवेगा। 4. चौथा भंग-बांधा था, नहीं बांधोता है, नहीं बांधोगा', यह उस जीव में पाया जाता है, जो वर्तमान में चौदहवें गुणस्थान में विद्यमान है। उसने गतकाल (पूर्वकाल) में बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और भविष्यकाल में भी नहीं बांधेगा / 5. पंचम भंग--'नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगायह उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी नहीं की थी, अत: ऐपिथिक कर्म नहीं बांधा था, वर्तमान भव में उपशमश्रेणी में बांधता है, आगामी भव में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी में बांधेगा। 6. छठा भंग-'नहीं बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा' यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी नहीं की थी, अतः नहीं बांधा था, वर्तमानभव में क्षपक श्रेणी में बांधता है, इसी भव में मोक्ष चला जाएगा, इसलिए अागामी काल (भव) में नहीं बांधेगा। 7. सप्तम भंग-नहीं बांधा था, नहीं बांधता है, बांधेगा' यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जो जीव भव्य है, किन्तु भूतकाल में उपशमश्रेणी नहीं की, इसलिए नहीं बांधा था, वत काल में भी उपशमश्रेणी नहीं करता, इसलिए नहीं बांधता, किन्तु आगामीकाल में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी करेगा, तब बांधेगा। 5. अष्टमभंग-'नहीं बांधा था, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा यह भंग अभन्यजीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में ऐर्यापथिककर्म नहीं बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और भविष्य में भी नहीं बांधेगा, क्योंकि अभव्य जीव ने उपशमश्रणी या क्षपकश्रेणी नहीं की, न करता है, और न ही करेगा / एक ही भव में ऐपिथिक कर्म पुदगलों के ग्रहणरूप 'ग्रहणाकर्ष' की दृष्टि से -1. प्रथमभंग-उस जीव में पाया जाता है, जिसने इसी भव में भूतकाल में उपशमश्रणी या क्षपकश्रेणी के समय ऐपिथिककर्म बांधा था, वर्तमान में बांधता है, भविष्य में बांधेगा। 2. द्वितीयभंग-तेरहवें गुणस्थान में एक समय शेष रहता है, उस समय पाया जाता है, क्योंकि उसने भूतकाल में बांधा था, वर्तमानकाल में बांधता है, और आगामीकाल में शैलेशी अवस्था में नहीं बांधेगा। 3. तृतीयभंग-का स्वामी वह जीव है, जो उपशमश्रेणी करके उससे गिर गया है / उसने उपशमश्रेणी के समय ऐर्यापथिक कर्म बांधा था, अब वर्तमान में नहीं बांधता और उसी भव में फिर उपशमश्रणी करने पर बांधेगा; क्योंकि एक भव में एक जीव दो बार उपशमश्रणी कर सकता है। 4. चौथाभंग-चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में पाया जाता है। सयोगीअवस्था में उसने ऐर्यापथिक कर्म बांधा था; किन्तु एक समय पश्चात ही चौदहवें गुणस्थान की प्राप्ति हो जाने पर शैलेशी अवस्था में नहीं बांधता, तथा आगामीकाल में नहीं बांधेगा। 5. पांचवांभंग-उस जीव में पाया जाता है, जिसने आयुष्य के पूर्वभाग में उपशमश्रेणी आदि नहीं की, इसलिए नहीं बांधा, वर्तमान में श्रेणी प्राप्त की है, इसलिए बांधता है और भविष्य में भी बांधेगा। 6. छठाभंग-शून्य है। यह किसी भी जोव में नहीं पाया जाता, क्योंकि छठाभंग है-नहीं बांधा, बांधता है, नहीं बांधेगा / प्रथम की दो बातें तो किसी जीव में सम्भव हैं, लेकिन 'नहीं बांधेगा' यह बात एक ही भव में नहीं पाई जा सकती। 7. सप्तमभंग भव्यविशेष की अपेक्षा से है / 6. अष्टमभंग—अभव्य की अपेक्षा से है। ऐर्यापथिक कर्म-बन्ध-विकल्प चतुष्टय–यहाँ सादि-सान्त, सादि-अनन्त, अनादि-सान्त और अनादि-अनन्त इन चार विकल्पों को लेकर ऐर्यापथिक कर्म- बंधकर्ता के सम्बन्ध में प्रश्न किया गया है, जिसके उत्तर में कहा गया है—प्रथम विकल्प-सादि-सान्त में ही ऐपिथिक कर्मबन्ध होता है, शेष तीन विकल्पों में नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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