________________ 342 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अथवा २–बांधा है, बांधता है, नहीं बांधेगा, या ३–बांधा है, नही बांधता है, बांधेगा, अथवा ४बांधा है, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा, या ५–नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगा, अथवा 6 नहीं बांधा, बांधता है, नहीं बांधेगा, या 7 नहीं बांधा, नहीं बांधता, बांधेगा ८-न बांधा, न बांधता है, न बांधेगा? [14 उ.] गौतम ! भवाकर्ष की अपेक्षा किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है और बांधेगा; किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है और नहीं बांधेगा; यावत् किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा। इस प्रकार (प्रश्न में कथित) सभी (पाठों) भंग यहाँ कहने चाहिए। ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा (1) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, बांधेगा; (2) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, नहीं बांधेगा; (3) बांधा, नहीं बांधता है, वांधेगा; (4) बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा; (5) किसी एक जीव ने नहीं बांधा, बांधता है, यहाँ तक (यावत्) कहना चाहिए / इसके पश्चात् छठा भंग नहीं बांधा, बांधता नहीं है, बांधेगा; नहीं कहना चाहिए / (तदनन्तर सातवां भंग)-किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा और पाठवां भंग एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा, (कहना चाहिए / ) 15. तं भंते ! कि साईयं सपज्जवसियं बंधइ, साईयं अपज्जवसियं बंधइ, प्रणाईयं सपज्जबसियं बंध, प्रणाईयं अपज्जवसियं बंध? गोयमा ! साईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो साईयं अपज्जवसियं बंधइ, नो प्रणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ / [15 प्र.] भगवन् ! जीव ऐपिथिक कर्म क्या सादि-सपर्यवसित बांधता है या सादिअपर्यवसित बांधता है, अथवा अनादि-सपर्यवसित बांधता है या अनादि-अपर्यवसित बांधता है ? [15 उ.] गौतम ! जीव ऐर्यापथिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादि-अपर्यवसित नहीं बांधता, अनादि-सपर्यवसित नहीं बांधता और न अनादि-अपर्यवसित बांधता है। 16. तं भंते ! कि देसेणं देसं बंधह, देसेणं सम्वं बंधइ, सम्वेणं देसं बंधइ, सवेणं सव्वं बंधइ ? गोयमा ! नो देसणं देसं बंधई, णो देसेणं सव्वं बंधइ, नो सम्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ। [16 प्र.] भगवन् ! जीव ऐर्यापथिक कर्म देश से आत्मा के देश को बांधता है, देश से सर्व को बांधता है, सर्व से देश को बांधता है या सर्व से सर्व को बांधता है ? [16 उ.] गौतम ! वह ऐर्यापथिक कर्म देश से देश को नहीं बाँधता, देश से सर्व को नहीं बांधता, सर्व से देश को नहीं बांधता, किन्तु सर्व से सर्व को बांधता है / 17. संपराइयं णं भंते ! कम्म कि नेरइयो बंधइ, तिरिक्खजोणीओ बंधइ, जाव देवी बंधइ ? गोयमा ! नेरइयो वि बंधइ, तिरिक्खजोणीग्रो वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मणुस्सो वि बंधइ, मणुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ / [17 प्र.] भगवन ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बांधता है, तिर्यञ्च बांधता है, तिर्यञ्चस्त्री (मादा) बांधती है, मनुष्य बांधता है, मनुष्य-स्त्री बांधती है, देव बांधता है या देवी बांधती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org