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________________ 324] व्याख्याप्रप्तिसूत्र [23 प्र.] भगवन् ! बहुत-से नैरयिक जीव, दूसरे जीवों के प्रौदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ? [23 उ. गौतम ! वे तीन क्रिया वाले भी, चार क्रिया वाले भी और पांच क्रिया वाले भी होते हैं। 24. एवं जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा (सु 22) / [24] इसी तरह यावत् वैमानिक-पर्यन्त समझना चाहिए। विशेष इतना ही है कि मनुष्यों का कथन औधिक जीवों की तरह (सू. 22 में कहे अनुसार) जानना चाहिए। 25. जीवे णं भंते ! वेउब्वियसरीराम्रो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउ किरिए, सिप अकिरिए। [25 प्र.] भगवन् ! एक जीव, (दूसरे एक जीव के) वैक्रियशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? {25 उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् क्रियारहित होता है। 26. नेरइए णं भंते ! वेउब्वियसरीरामो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए। [26 प्र.] 'भगवन् ! एक नैरयिक जीव, (दूसरे एक जीव के) वैक्रिय शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [26 उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला और कदाचित् चार क्रिया वाला होता है। 27. एवं जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु 25) / [27] इस प्रकार यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। किन्तु मनुष्य का कथन औधिक जीव की तरह (सू. 25) कहना चाहिए। 28. एवं जहा पोरालियसरीरेणं चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेउध्वियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियन्वा, नवरं पंचकिरिया न भण्णइ, सेसं तं चेव / [28] जिस प्रकार औदारिकशरीर की अपेक्षा चार दण्डक कहे गए, उसी प्रकार वैक्रियशरीर की अपेक्षा भी चार दण्डक कहने चाहिए / विशेषता इतनी है कि इसमें पंचम क्रिया का कथन नहीं करना चाहिए / शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। 26. एवं जहा वे उब्वियं तहा आहारगं पि, तेयगं पि, कम्मगं पि भाणियव्वं / एक्केक्के चत्तारि दंडगा भाणियन्या जाव वेमाणिया गं भंते ! कम्मगसरीरेहितो कइकिरिया? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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