________________ अष्टम शतक : उद्देशक-६ ] [ 323 16. नेरइए णं भंते ! पोरालियसरोरेहितो कतिकिरिए ? एवं एसो जहा पढमो दंडनो (सु. 15-17) तहा इमो वि अपरिसेसो भाणियन्वो जाव बेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जोवे (सु. 18) / _[16 प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक जीव, (दूसरे जीवों के) औदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [16 उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. 15 से 17) में कहा गया है उसी प्रकार यह दण्डक भी सारा का सारा यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए; परन्तु मनुष्य का कथन सामान्य (औधिक) जीवों की तरह (सू. 18 में कहे अनुसार) जानना चाहिए / 20. जीवा णं भंते ! पोरालियसरीरामो कतिकिरिया ? गोयमा ! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया / [20 प्र.) भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे के एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ? _ [20 उ.] गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं, तथा कदाचित् अक्रिय भी होते हैं / / 21. नेरइया णं भंते ! प्रोरालियसरीरामो कतिकिरिया ? __ एवं एसो वि जहा पढमो दंडगो (सु. 15-17) तहा भाणियन्वो जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा (सु. 20) / [21 प्र.] भगवन् ! बहुत-से नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया बाले होते हैं ? [21 उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम दण्डक (सू. 15 से 17 तक) में कहा गया है, उसी प्रकार यह (दण्डक) भी यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए / विशेष यह है कि मनुष्यों का कथन औधिक जीवों की तरह (सू. 18 के अनुसार) जानना चाहिए / 22. जीवा गं भंते ! पोरालियसरीरेहितो कतिकिरिया ? गोधमा ! तिकिरिया वि, चकिरिया वि, पंचकिरिया वि, अकिरिया वि। 22 प्र.] भगवन् ! बहुत-से जीव, दूसरे जीवों के औदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाले होते हैं ? [22 उ.] गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले और कदाचित् अक्रिय भी होते हैं। 23. नेरइया णं भंते ! पोरालियसरीरेहितो कइकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org