________________ 322] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एक जीव या बहुत जीवों को परकीय (एक या बहुत-से शरीरों की अपेक्षा होने वाली) क्रियाओं का निरूपण 14. जीवे णं भंते ! प्रोरालियसरीरामो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिए पंचकिरिए, सिय अकिरिए। [.14 प्र.) भगवन् ! एक जीव (स्वकीय औदारिक शरीर से, परकीय) एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [14 उ.] मौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला, कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है और कदाचित् अक्रिय भी होता है / 15. नेरइए णं भंते ! पोरालियसरीराओ कतिकिरिए ? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए सिए पंचकिरिए / [15 प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [15 उ.} गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है / 16. असुरकुमारे णं भंते ! अोरालयसरीरानो कतिकिरिए ? एवं चेव / [16 प्र.] भगवन् ! एक असुरकुमार, (दूसरे के) एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [16 उ.] गौतम ! पहले कहे अनुसार (कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला) होता है। 17. एवं जाव वेमाणिय, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु. 14) / [17] इसी प्रकार यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। परन्तु मनुष्य का कथन औधिक जीव की तरह जानना चाहिए। 18. जीचे णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए जाब सिय अकिरिए। [18 प्र.] भगवन् ! एक जीव (दूसरे जीवों के) औदारिक शरीरों की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? [18 उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया बाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला, तथा कदाचित् अक्रिय (क्रियारहित) भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org