________________ अष्टम शतक : उद्देशक 6 ] [ 321 आराधक विराधक की व्याख्या--आराधक का अर्थ यहाँ मोक्षमार्ग का पाराधक तथा भाव शुद्ध होने से शुद्ध है। जैसे कि मृत्यु को लेकर कहा गया है-आलोचना के सम्यक् परिणामसहित कोई साधु गुरु के पास आलोचनादि करने के लिए चल दिया है, किन्तु यदि बीच में ही वह साधु (पालोचना करने से पूर्व ही) रास्ते में काल कर गया, तो भी वह भाव से शुद्ध है।' स्वयं आलोचनादि करने वाला वह साधु गीतार्थ होना सम्भव है। तीन पाठ (गम)-(१) पाहारग्रहणार्थ गृहस्थगृह-प्रविष्ट, (2) विचारभूमि आदि में तथा (3) ग्रामानुग्राम-विचरण में / जलते हुए दीपक और घर में, जलने वाली वस्तु का निरूपरण 12. पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स कि पदोवे झियाति, लट्टी झियाइ, वत्ती झियाइ, तेल्ले झियाइ, दीवचंपए झियाइ, जोती झियाइ ? गोयमा ! नो पदीवे झियाइ, जाव नो दीवचंपए झियाइ, जोती झियाइ। [12 प्र.] भगवन् ! जलते हुए दीपक में क्या जलता है ? क्या दीपक जलता है ? दीपयष्टि (दीवट) जलती है ? बत्ती जलती है ? तेल जलता है ? दीपचम्पक (दीपक का ढक्कन) जलता है, या ज्योति (दीपशिखा) जलती है ? / [12 उ.] गौतम ! दीपक नहीं जलता, यावत् दीपक का ढक्कन भी नहीं जलता, किन्तु ज्योति (दीपशिखा) जलती है। 13. अगारस्स गं भंते ! झियायमाणल्स कि अगारे झियाइ, कुड्डा झियायंति, कडणा झियायंति, धारणा झियायंति, बलहरणे झियाइ, वंसा झियायंति, मल्ला झियायंति, बग्गा झियायंति, छित्तरा झियायंति, छाणे झियाति, जोती झियाति ? गोयमा ! नो अगारे झियाति, नो कुड्डा झियाति, जाव नो छाणे झियाति, जोती झियाति / [13 प्र.] भगवन् ! जलते हुए घर (आगार) में क्या जलता है ? क्या घर जलता है ? भीतें जलती हैं ? टाटी (खसखस आदि की टाटी या पतली दीवार) जलती हैं ? धारण (नीचे के मुख्य स्तम्भ) जलते हैं ? बलहरण (मुख्य स्तम्भ-धारण पर रहने वाली प्राडी लम्बी लकड़ी बल्ली) जलता है ? बांस जलते हैं ? मल्ल (भीतों के आधारभूत स्तम्भ) जलते हैं ? वर्ग (बांस आदि को बांधने वाली छाल) जलते हैं ? छित्वर (बांस आदि को ढकने के लिए डाली हुई चटाई या छप्पर) जलते हैं ? छादन (छाण-दर्भादियुक्त पटल) जलता है अथवा ज्योति (अग्नि) जलती है ? [13 उ.] गौतम ! घर नहीं जलता, भीतें नहीं जलती, यावत् छादन नहीं जलता, किन्तु ज्योति (अग्नि) जलती है। विवेचन-जलते हुए दीपक और घर में, जलने वाली वस्तु का विश्लेषण प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 12-13) में दीपक और घर का उदाहरण दे कर इनमें वास्तविक रूप में जलने वाली वस्तुदीपशिखा और अग्नि बताई गई है। ___अगार का विशेषार्थ-अगार से यहाँ घर ऐसा समझना चाहिए जो कुटी या झोंपड़ीनुमा हो / 1. "पालोयणा-परिणनो सम्म संपट्ठियो गुरुसगासे / जइ मरइ अंतरे च्चिय तहावि सुद्धोति भावाप्रो ॥"-भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 376 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org