________________ अष्टम शतक : उद्देशक-६ / [ 317 पुनः ऐसा अकृत्य न करने के लिए अभ्युद्यत (प्रतिज्ञाबद्ध) होऊँ; और यथोचित प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लू / तत्पश्चात् स्थविरों के पास जाकर आलोचना करूंगा, यावत् प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूगा / (ऐसा विचार कर) वह निम्रन्थ, स्थविरमुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुआ; किन्तु स्थविरमुनियों के पास पहुँचने से पहले ही वे स्थविर (वातादिदोष के प्रकोप से) मूक हो जाएँ (बोल न सके अर्थात् प्रायश्चित्त न दे सके) तो हे भगवन् ! वह निर्गन्थ प्राराधक है या विराधक है ? [7-1 उ.] गौतम ! वह (निर्गन्थ) आराधक है, विराधक नहीं। [2] से य संपढिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव अमुहे सिया, से गं भंते ! कि पाराहए, विराहए? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए। [7-2 प्र.] (उपर्युक्त अकृत्यसेवी निर्ग्रन्थ ने तत्काल स्वयं आलोचनादि कर लिया, यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म भी स्वीकार कर लिया,) तत्पश्चात् स्थविरमुनियों के पास (आलोचनादि करके यावत् तपःकर्म स्वीकार करने हेतु) निकला, किन्तु उनके पास पहुँचने से पूर्व ही वह निग्रन्थ स्वयं (वातादि दोषवश) मूक हो जाए, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? [7-2 उ.] गौतम ! वह (निर्गन्थ) आराधक है, विराधक नहीं / [3] से य संपढ़िए, प्रसंपत्ते थेरा य कालं करेज्जा, से णं भंते ! कि पाराहए विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए। [7-3 प्र.] (उपर्युक्त प्रकृत्यसेवी निर्ग्रन्थ स्वयं आलोचनादि करके यथोचित प्रायश्चित्त रूप तप स्वीकार करके) स्थविर मुनिवरों के पास आलोचनादि के लिए रवाना हुआ, किन्तु उसके पहुँचने से पूर्व ही वे स्थविर मुनि काल कर (दिवंगत हो) जाएं, तो हे भगवन् ! वह निग्रन्थ आराधक है विराधक ? [7-3 उ. गौतम ! वह निम्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं / [4] से य संपट्टिए प्रसंपत्ते अप्पणा य पुवामेव कालं करेज्जा, से णं भंते ! कि पाराहए विराहए? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए। [7-4 प्र. भगवन् ! (उपर्युक्त अकृत्य-सेवन करके तत्काल स्वयं पालोचनादि करके) वह निम्रन्थ स्थविरों के पास आलोचनादि करने के लिए निकला, किन्तु वहाँ पहुँचा नहीं, उससे पूर्व ही स्वयं काल कर जाए तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? [7-4 उ.] गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org