________________ 308] [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 8. एवं अदिण्णादाणस्स वि / एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि / थूलगस्स परिग्गहस्स वि जाव प्रहया करेंतं नाणजाण कायसा। [8] इसी प्रकार स्थूल अदत्तादान के विषय में, स्थूल मैथुन के विषय में एवं स्थूल परिग्रह के विषय में भी पूर्ववत् प्रत्येक के एक सौ सैंतालीस-एक सौ संतालीस त्रैकालिक भंग कहने चाहिए; यावत्-'अथवा पाप करते हुए का अनुमोदन नहीं करता, काया से ;' यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन श्रावक के प्राणातिपात प्रादि पापों के प्रतिक्रमण-संवर-प्रत्याख्यान सम्बन्धी भंगों की प्ररूपणा प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 6 से 8 तक) में प्राणातिपात आदि पापों के स्थूल रूप से प्रतिक्रमण करने, संवर करने और प्रत्याख्यान करने की विधि के रूप में प्रत्येक के 46-46 भंग बताए गए हैं। श्रावक को प्रतिक्रमण, संवर और प्रत्याख्यान करने के लिए प्रत्येक के 46 भंग-तीन करण हैं-करना, कराना और अनुमोदन करना, तथा तीन योग हैं—मन, वचन और काया / इनके संयोग से विकल्प नौ और भंग उननचास होते हैं। उनकी तालिका इस प्रकार है-- विकल्प करण योग | भंग विवरण तीन / एक 3 दो / कृत, कारित, अनुमोदित का मन, वचन, काया से निषेध कृत, कारित, अनुमोदित का मन-वचन से, मन-काय से, बचन-काया से निषेध कृत-कारित-अनुमोदित मन से, वचन से, काया से निषेध कृत-कारित का, कृत-अनुमोदित का और कारित-अनुमोदित का मनवचन-काय से निषेध कृत-कारित, कृत-अनुमोदित और कारित-अनुमोदित का मन-वचन से, मन-काया से और वचन-काया से निषेध कृत-कारित का मन से, वचन से, काया से ; कृत-अनुमोदित का मन-वचनकाया से; कारित-अनुमोदित का भी इसी प्रकार निषेध कृत का मन-वचन-काया से; कारित का मन-वचन-काया से और अनुमोदित का मन-वचन-काया से निषेध कृत का मन-वचन से, मन-काया से, वचन-काया से / कारित का | एक | दो | मन-वचन से, मन-काया से और वचन-काया से, इसी प्रकार अनुमोदित | का निषेध | एक एक | | कृत का मन से, वचन से, काया से / कारित का भी इसी तरह और अनू मोदित का भी इसी तरह निषेध / कुल भंग =46 | तीन | 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org