________________ प्रथम शतक : उद्देशक-२] गाथार्थ-दुःख (कर्म) और आयुष्य उदीर्ण हो तो वेदते हैं। आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और आयुष्य, इन सबकी समानता के सम्बन्ध में पहले कहे अनुसार ही समझना चाहिए। 13. कति णं भंते ! लेसाओ पण्णत्तायो ? गोयमा ! छल्लेसानो पण्णतायो / तं जहा-लेसाणं बोरो उद्देसनो माणियब्वो जाव इड्डी। 13 प्र.] 'भगवन् ! लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ? [13 उ.) गौतम ! लेश्याएँ छह कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल / यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के लेश्यापद (17 बाँ पद) का द्वितीय उद्देशक कहना चाहिए। वह ऋद्धि को वक्तव्यता तक कहना चाहिए। विवेचन-नारक आदि चौबीस दण्डकों के सम्बन्ध में समाहारादि दशद्वार-सम्बन्धी प्रश्नोत्तरपांचवें सूत्र से ११वें मूव तक नारकी से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों के सम्बन्ध में निम्नोक्त दम द्वार-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर अंकित किये गए हैं--(१) सम-आहार (2) सम-शरीर, (3) समउच्छ्वास-निःश्वास, (4) समकर्म, (5) समवर्ण, (6) समलेश्या, (7) समवेदना, (8) समकिया, (9) समायुष्क, तथा (10) समोपपन्नक / छोटा-बड़ा शरीर प्रापेक्षिक प्रस्तुत में नैरमिकों का छोटा और बड़ा शरीर अपेक्षा से है। छोटे को अपेक्षा कोई वस्तु बड़ी कहलाती है, और बड़ी को अपेक्षा छोटी कहलाती है। नारकों का छोटे से छोटा शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना है और बड़े से बड़ा 500 धनुष के बराबर है / ये दोनों प्रकार के शरीर भवधारणीय शरीर को अपेक्षा से कहे गए हैं। उत्तरवैक्रिय शरीर छोटे से छोटा अंगुल के संख्यातवें भाग तक और बड़ा से बड़ा शरीर एक हजार धनुष का हो सकता है। प्रथम प्रश्न प्राहार का, किन्तु उत्तर शरीर का इसलिए कहा गया है कि शरीर का परिमाण बताए बिना आहार, श्वासोच्छ्वास आदि को बात सरलतापूर्वक समझ में नहीं आ सकती। अल्प शरीर वाले से महाशरीर वाले का प्राहार अधिक : यह कथन प्रायिक प्रस्तुत कथन अधिकांश (बहुत) को दृष्टि में रखकर कहा गया है / यद्यपि लोक में यह देखा जाता है कि बड़े शरीर वाला अधिक लाता है, और छोटे शरीर वाला कम, जैसे कि हाथी और खरगोश; तथापि कहीं-कहीं यह बात अवश्य देखी जाती है कि बड़े शरीर वाला कम और छोटा शरीर वाला अधिक आहार करता है। योगलिकों का शरीर अन्य मनुष्यों की अपेक्षा बड़ा होता है, लेकिन उनका आहार कम होता है। दूसरे मनुष्यों का शरीर यौगलिकों की अपेक्षा छोटा होता है, किन्तु उनका आहार अधिक होता है / ऐसा होने पर भी प्रायः यह सत्य ही है कि बड़े शरीर वाले का आहार अधिक होता है, कदाचित् नैरयिकों में भी ग्राहार और शरीर का व्यतिक्रम कहीं पाया जाए तो भो बहुतों की अपेक्षा यह कथन होने से निर्दोष है। बड़े शरीर वाले को वेदना और श्वासोच्छवास-मात्रा अधिक-लोकव्यवहार में भी देखा जाता है कि बड़े को जितनी ताड़ना होतो है, उतनी छोटे को नहीं। हाथी के पैर के नीचे और जीव तो प्राय : दब कर मर जाते हैं, परन्तु चोंटी प्रायः बच जाती है। इसी प्रकार महाशरीर वाले नारकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org