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________________ 292] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! सध्वत्थोवा मणपज्जवनाणपज्जवा, प्रोहिनाणपज्जवा अणतगुणा, सुतनाणपज्जवा अणंतगुणा, प्राभिणिबोहियनाणपज्जवा अणंतगुणा, केवलनाणपज्जवा अणंतगुणा / [160 प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [160 उ.] गौतम ! मन:पर्यायज्ञान के पर्याय सबसे थोड़े हैं। उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं। उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं / उनसे प्राभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं / 161. एएसिणं भंते ! मइअन्नाणपज्जवाणं सुतमन्नाणपज्जवाणं विभंगनाणपज्जवाण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्वत्थोवा विभंगनाणपज्जवा, सुतप्रन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, मतिअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा। [161 प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) मति-अज्ञान, श्रत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में, किनके पर्याय, किनके पर्यायों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [161 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े विभंगज्ञान के पर्याय हैं। उनसे श्रुत-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं। 162. एएसि गं भंते ! आभिणिबोहियणाणपज्जवाणं जाव केवलनाणपज्जवाणं मइअन्नाणपज्जवाणं सुयअन्नाणपज्जवाणं विभंगनाणपज्जवाण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मणयज्जक्नाणपज्जवा, विभंगनाणपज्जवा अणंतगुणा, ओहिणाणपज्जवा अणंतगुणा, सुतअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, सुतनाणपज्जवा विसेसाहिया, मइअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, प्राभिणिबोहियनाणपज्जवा विसेसाहिया, केवलनाणपज्जवा प्रणंतगुणा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः / ॥पटुम सए : बितिम्रो उद्देसनो समत्तो / / [162 प्र.] भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) आभिनिबोधिकज्ञान-पर्याय यावत् केवलज्ञान पर्यायों तक में तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किसके पर्याय, किसके पर्यायों से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [162 उ. गौतम ! सबसे थोड़े मनःपर्यायज्ञान के पर्याय हैं / उनसे विभंगज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं। उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं। उनसे श्रुत-अज्ञान के पर्याय अनन्त गुणे हैं। उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं / उनसे मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं। उनसे मतिज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं और केवलज्ञान के पर्याय उनसे अनन्तगुणे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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