________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [ 291 ज्ञानी और अज्ञानी जीवों का परस्पर सम्मिलित अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े मन:पर्यायज्ञानी हैं, उनसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुणे हैं / उनसे आभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी विशेषाधिक और परस्पर तुल्य हैं। उनसे विभंगज्ञानी असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि सम्यग्दृष्टि देव और नारकों से मिथ्यादृष्टि देव-नारक असंख्यातगुणे हैं। उनसे केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय शेष सभी जीवों से सिद्ध अनन्तगुणे हैं। उनसे मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी अनन्तगुणे हैं, और वे परस्पर तुल्य हैं; क्योंकि साधारण वनस्पतिकायिकजीव भी मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी होते हैं, और वे सिद्धों से अनन्तगुणे हैं।' बीसवें पर्यायद्वार के माध्यम से ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों को प्ररूपरणा 156, केवतिया णं भंते ! प्रानिणिबोहियणाणपज्जवा पण्णता? गोयमा ! अणंता प्राभिणिबोहियणाणपज्जवा पण्णत्ता। [156 प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय कितने कहे गए हैं ? [156 उ.] गोतम ! प्राभिनिबोधिक ज्ञान के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। 157. [1] केवतिया णं भंते ! सुतनाणपज्जवा पण्णत्ता ? एवं चेव। [157-1 प्र.] भगवन् ! श्रुतज्ञान के पर्याय कितने कहे गए हैं ? [176-1 उ.] गौतम ! श्रुतज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए हैं / [2] एवं जाव केवलनाणस्स / [157-2] इसी प्रकार अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए हैं। 158. एवं मतिमन्नाणस्स सुतमलाणस्स / [158] इसी प्रकार मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान के भी अनन्त पर्याय कहे गए हैं। 156. केवतिया णं भंते ! विभंगनाणपज्जवा पण्णता? गोयमा ! अणंता विभंगनाणपज्जवा पण्णत्ता / 201 [156 प्र.] भगवन् ! विभंगज्ञान के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [156 उ.] गौतम ! विभंगज्ञान के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। (पर्यायद्वार) ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों का अल्पबहुत्व 160. एतेसि गं भंते ! प्राभिणिबोहियनाणपज्जवाणं सुयनाणपज्जवाणं प्रोहिनाणपज्जवाणं मणपज्जवनाणपज्जवाणं केवलनाणपज्जवाण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 362 (ख) प्रज्ञापनासूत्र तृतीय बहुवक्तव्यपद, सू. 212, 334, पृ. 80 से 111 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org