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________________ 286] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 146. महमन्त्राणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पन्नते? गोयमा ! से समासतो चतुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दध्वतो खेत्ततो कालनो भावतो। दम्वतो णं मइअनाणी मइनाणपरिगताई दवाई जाणति पासति / एवं जाव भावतो मइनन्नाणी मइमन्नाणपरिगते भावे जाणति पासति / [149 प्र.] भगवन् ! मति-अज्ञान (मिथ्यामतिज्ञान) का विषय कितना कहा गया है ? [149 उ.] गौतम ! वह (मति-अज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार---द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से / द्रव्य से, मति-अज्ञानी, मति-अज्ञान-परिगत (मति-अज्ञान के विषयभूत) द्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव से मतिअज्ञानी मति-अज्ञान के विषयभूत भावों को जानता और देखता है / 150. सुतअन्नाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पग्णते? गोयमा! से समासतो चम्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दबतो खेत्ततो कालतो भावतो। दन्वतो णं सुयअन्नाणी सुतअन्नाणपरिगयाइं दवाइं आघवेति पण्णवेति परवेइ / एवं खेत्ततो कालतो / भावतो णं सुयअन्नाणी सुतअन्नाणपरिगते भावे प्राघवेति तं चेव / [150 प्र.भगवन् ! श्रुत-प्रज्ञान (मिथ्याश्रुतज्ञान) का विषय कितना कहा गया है ? [150 उ.] गौतम ! वह (श्रुत-अज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से / द्रव्य से. श्रत-अज्ञानी श्रतभूत द्रव्यों का कथन करता है, उन द्रव्यों को बतलाता है, उनकी प्ररूपणा करता है। इसी प्रकार क्षेत्र से और काल से भी जान लेना चाहिए। भाव की अपेक्षा श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत भावों को कहता है, बतलाता है, प्ररूपित करता है / 151. विभंगणाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णते? गोयमा! से समासतो चतुरिवहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वतो खेततो कालतो भावतो। दवतो णं विभंगनाणी विभंगणाणपरिगयाइं दवाई जापति पासति / एवं जाव भावतो णं विभंगनाणो विभंगनाणपरिगए भावे जाणति पासति / 16 / [151 प्र.] भगवन् ! विभंगज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [151 उ.] गौतम ! वह (विभंगज्ञान-विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत द्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव को अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत भावों को जानता और देखता है। (विषयद्वार) विवेचन---ज्ञान और प्रज्ञान के विषय की प्ररूपणा–प्रस्तुत पाठ सूत्रों (सू. 144 से 151 तक) में विषयद्वार के माध्यम से पांच ज्ञानों और तीन अज्ञानों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से विषय का निरूपण किया गया है। ज्ञानों का विषय--(१) आभिनिबोधिक ज्ञान का विषय द्रव्यादि चारों अपेक्षा से कहाँ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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