________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२ ] [ 285 145. सुतनाणस्स गं भंते ! केवतिए विसए पणते ? गोयमा ! से समासो चतुबिहे पण्णते, तं जहा-दन्यतो खेत्ततो कालतो भावतो / दन्यतो णं सुतनाणी उवयुले सम्वदन्वाइं जाणति पासति / एवं खेत्ततो वि, कालतो वि। भावतो गं सुयनाणी उवजुत्ते सम्वभावे जाणति पासति / [145 प्र.] भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [145 उ.] गौतम ! वह (श्रुतज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से / द्रव्य से, उपयोगयुक्त (उपयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से, श्रुतज्ञानी उपयोगसहित सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। इसी प्रकार काल से भी जानना चाहिए। भाव से उपयुक्त (उपयोगयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है। 146. प्रोहिनाणसणं भंते ! केवतिए विसए पणते ? गोयमा ! से समासो चतुम्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दन्यतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्यतो गं प्रोहिनाणो रूविदवाई जाणति पासति जहा नंदीए जाव भावतो। [146 प्र.] भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [146 उ.] गौतम ! वह (अवधिज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का है। वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपीद्रव्यों को जानता और देखता है / (तत्पश्चात् क्षेत्र से, काल से और भाव से) इत्यादि वर्णन जिस प्रकार नन्दीसूत्र में किया गया है, उसी प्रकार यावत् 'भाव' पर्यन्त वर्णन करना चाहिए। 147. मणपज्जवनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णते ? गोयमा ! से समासनो चविहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्यतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्यतो णं उज्जुमती आणते प्रणतपदेसिए जहा नंदीए जाव भावो। [147 प्र.] भगवन् ! मनःपर्यवज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [147 उ.] गौतम! वह (मन:पर्यवज्ञान-विषय) संक्षेप में चार प्रकार का है। वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से, ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञानी (मनरूप में परिणत) अनन्तप्रादेशिक अनन्त (स्कन्धों) को जानता-देखता है, इत्यादि जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी यावत् 'भावतः' तक कहना चाहिए / 148. केवलनाणस्स गंभंते ! केवतिए विसए पण्णते? गोयमा ! से समासम्रो चतुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दम्वतो खेत्ततो कालतो भावतो। दवतो णं केवलनाणी सम्वदन्वाइं जाणति पासति / एवं जाव भावप्रो / [148 प्र.] भगवन् ! केवलज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [148 उ.] गौतम ! वह (केवलज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से / द्रव्य से केवलज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है / इस प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org