________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [283 [143 प्र.] भगवन् ! अनाहारक जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? [143 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं, उनमें मन:पर्यवज्ञान को छोड़ कर शेष चार ज्ञान पाए जाते हैं; और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। (पन्द्रहवां द्वार) विवेचन-दसवें उपयोगद्वार से पन्द्रहवें प्राहारक द्वार तक के जीवों में ज्ञान और प्रज्ञान की प्ररूपणा प्रस्तुत 26 सूत्रों (सू. 118 से 143 तक) में उपयोग, योग, लेश्या, कषाय, वेद और आहार इन छह प्रकार के विषयों से सहित और रहित जीवों में पाए जाने वाले ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा की गई है। 10. उपयोगद्वार-उपयोग एक तरह से ज्ञान ही है, जो जीव का लक्षण है, जीव में अवश्य पाया जाता है। इसके दो प्रकार हैं-साकार-उपयोग और निराकार-उपयोग / साकार का अर्थ है-- विशेषतासहित बोध / उसका उपयोग, अर्थात्--ग्रहण-व्यापार, साकारोपयोग (ज्ञानोपयोग) कहलाता है। साकारोपयोग-यूक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकार के होते हैं। ज्ञानी जीवों में से कुछ जीवों में दो, कुछ जीवों में तीन, कुछ जीवों में चार और कुछ जीवों में एकमात्र केवलज्ञान होता है; इस तरह ऐसे जीवों में पांच ज्ञान भजना से होते हैं। इनका कथन यहां ज्ञानल ब्धि की अपेक्षा से समझना चाहिए, उपयोग की अपेक्षा से तो एक समय में एक ही ज्ञान अथवा एक हो अज्ञान होता है। इनमें जो जीव अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। आभिनिबोधिक (मति) ज्ञान आदि साकारोपयोग के भेद हैं / आभिनिबोधिक आदि से युक्त साकारोपयोग वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान का कथन उपर्युक्त वर्णनानुसार उस-उस ज्ञान या अज्ञान की लब्धि वाले जीवों के समान जानना चाहिए। अनाकारोपयोग-जिस ज्ञान में प्राकार अर्थात्---जाति, गुण, क्रिया आदि स्वरूपविशेष का प्रतिभास (बोध) न हो, उसे अनाकारोपयोग (दर्शनोपयोग) कहते हैं / अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं / ज्ञानी जीवों में लब्धि की अपेक्षा पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में लब्धि की अपेक्षा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन बाले जीव केवली नहीं होते, इसलिए चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन-ग्रनाकारोपयोग-युक्त जीवों का कथन अनाकारोपयोगयुक्त जीवों के समान जानना चाहिए। अर्थात् उनमें चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं / अवधिदर्शन-अनाकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी और अज्ञानी दो तरह के होते हैं, क्योंकि दर्शन का विषय सामान्य है / सामान्य अभिन्नरूप होने से दर्शन में ज्ञानी और अज्ञानी भेद नहीं होता / अतः इसमें कई तीन या चार ज्ञान वाले होते हैं, अथवा नियमतः तीन अज्ञान वाले होते हैं / ११-योगद्वार-सयोगी जीव अथवा मनोयोगी, बचनयोगी और काययोगी जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान समझना चाहिए / चूकि केवली भगवान् में भी मनोयोगादि होते हैं, इसलिए इनमें (सम्यग्दृष्टि आदि में) पांच ज्ञान भजना से होते हैं / तथा मिथ्यादृष्टि सयोगी या पृथक्पृथक् योग वाले जीवों में तीन अज्ञान भजना से होते हैं। अयोगी (सिद्ध भगवान् और चतुर्दश गुणस्थानवर्ती केवली) जीवों में एकमात्र एक केवलज्ञान होता है। १२-लेश्याद्वार-लेश्यायुक्त (सलेश्य) जीवों में ज्ञान-अज्ञान की प्ररूपणा सकषायी जीवों के समान है, उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से समझने चाहिए। चूकि केवलीभगवान् भी शुक्ललेश्या होने से सलेश्य होते हैं, इसलिए उनमें पंचम केवलज्ञान होता है। कृष्ण, नील, कापोत, तेज और पद्मलेश्या वाले जीवों में ज्ञान-अज्ञान की प्ररूपणा सेन्द्रिय जीवों के समान है, अर्थात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org