________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [ 281 131. सजोगी णं भंते ! जीवा कि नाणी ? जहा सकाइया (सु. 46) / [131 प्र.] भगवन् ! सयोगी जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? 131 उ.] गौतम ! सयोगी जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान (सू. 46 के अनुसार) समझना चाहिए। 132. एवं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी वि। 6132] इसी प्रकार मनोयोगी, बचनयोगी और काययोगी जीवों का कथन भी समझना चाहिए। 133. अजोमी जहा सिद्धा (सु. 38) / 11 / [133] अयोगी (योग-रहित) जीवों का कथन सिद्धों के समान (सू. 38 के अनुसार) समझना चाहिए। (ग्यारहवां द्वार) 134. सलेस्सा णं भंते !.? जहा सकाइया (सु. 46) / [134 प्र.] भगवन् ! सलेश्य (लेश्या वाले) जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? [134 उ.] गौतम ! सलेश्य जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान (सू. 49 के अनुसार) जानना चाहिए। 135. [1] कण्हलेस्सा णं भंते ! 0? जहा सइंदिया। (सु. 44) / [135-1 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यावान् जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [135-1 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्या वाले जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों के समान (सू. 44 के अनुसार) जानना चाहिए। [2] एवं जाव पम्हलेसा / [135-2] इसी प्रकार नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वाले जीवों का कथन करना चाहिए। 136. सुक्कलेस्सा जहा सलेस्सा (सु. 134) / [136] शुक्ललेश्या वाले जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान (सू. 134 के अनुसार) समझना चाहिए। 137. अलेस्सा जहा सिद्धा (सु. 38) / 12 / [137] अलेश्य (लेश्यारहित) जीवों का कथन सिद्रों के समान (सू. 38 के अनुसार) जानना चाहिए। (बारहवां द्वार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org