________________ 280] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 124. मइआण्णाणसागारोवउत्ताणं तिणि अण्णाणाई भयणाए / [124] मति-अज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं / 125. एवं सुतअण्णाणसागारोवउत्ता वि। [125] इसी प्रकार श्रुत-अज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन करना चाहिए / 126. विभंगनाणसागारोवजुत्ताणं तिणि अण्णाणाई नियमा। [126] विभंगज्ञान-साकारोपयोग-युक्त जीवों में नियमत: तीन अज्ञान पाए जाते हैं / 127. अणागारोवउत्ता गं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणो ? पंच नाणाई, तिणि अण्णाणाई मयणाए / [127 प्र.] भगवन् ! अनाकारोपयोग वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [127 उ.] गोतम ! अनाकारोपयोग-युक्त जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें पांच ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं / 128. एवं चक्खुदंसण-अचलदसणप्रणागारोवजुत्ता वि, नवरं चत्तारि णाणाई, तिपिण अण्णाणाई भयणाए। [128] इसी प्रकार चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग-युक्त जीवों के विषय में समझ लेना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से होते हैं / 126. प्रोहिदसणअणागारोवजुत्ता गं० पुच्छा। गोयमा! नाणी वि अण्णाणी वि। जे नाणो ते प्रत्येगतिया तिन्नाणी, अरथेगतिया चउनाणी। जे तिन्नाणी ते प्राभिणिजोहिय० सुतनाणी प्रोहिनाणी। जे च उणाणी ते प्राभिणिवोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी / जे अन्नाणी ते नियमा तिअण्णाणी, तं जहा--मइअण्णाणी सुतअण्णाणी विभंगनाणी / [126 प्र.] भगवन् ! अवधिदर्शन-अनाकारोपयोग-युक्त जीव ज्ञानी होते हैं अथवा अज्ञानी ? [126 उ.] गौतम! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी होते हैं, उनमें कई तीन ज्ञान वाले होते हैं और कई चार ज्ञान वाले होते हैं। जो तीन ज्ञान वाले होते हैं, वे पाभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानी होते हैं और जो चार ज्ञान वाले होते हैं, वे ग्राभिनिबोधिकज्ञान से लेकर यावत मनःपर्यवज्ञान तक वाले होते हैं। जो अज्ञानी होते हैं, उनमें नियमतः तीन अज्ञान पाए जाते हैं; यथा-मति-अज्ञान, श्रुत अज्ञान और विभंगज्ञान / 130. केवलदसणसणागारोवजुत्ता जहा केवलनाणलधिया (सु. 66 [1]) / 10 / . [130] केवलदर्शनअनाकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन केवलज्ञानलब्धियुक्त जीवों के समान (सू. 66.1 के अनुसार) समझना चाहिए। (दशम द्वार) Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org