________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] श्रु तज्ञान और अवधिज्ञान वाले हैं, और जो चार ज्ञान से युक्त हैं, वे साभिनिबोधिक ज्ञान, श्रु तज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। [2] तस्स अलद्धीया गं भंते ! जीवा कि नाणी ? गोयमा ! नाणो वि, अण्णाणी वि / एवं प्रोहिनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, तिणि अण्णाणाई भयणाए। [94-2 प्र.] भगवन् ! अवधिज्ञानलब्धि से रहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [94-2 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। इस तरह उनमें अवधिज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं / 65. [1] मणपज्जवनाणलधिया गं० पुच्छा। गोयमा! जाणो, णो अण्णाणी / अत्थेगतिया तिणाणि, प्रत्यातिया चउनाणी। जे तिणाणी ते प्राभिणिबोहियनाणी सुतणाणी मणपज्जवणाणी। जे चउनाणी ते प्राभिणिबोहियनाणी सुयनाणी प्रोहिनाणी मणपज्जवनाणी। [65.1 प्र.] भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [95-1 उ.] गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कितने ही तीन ज्ञान वाले हैं और कितने ही चार ज्ञान वाले हैं ! जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे प्राभिनिबोधिकज्ञान, श्र तज्ञान और मनःपर्यायज्ञान वाले हैं, और जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्यायज्ञान वाले हैं / [2] तस्स अलद्धोया गं० पुच्छा। गोयमा ! गाणी वि, अण्णाणो वि, मणपज्जवणाणवज्जाइं चत्तारि गाणाई, तिणि अण्णाणाई भयणाए। [65.2 प्र.] भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानलब्धि से रहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [65.2 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें मनःपर्यवज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं / 66. [1] केवलनाणलधिया णं भंते ! जीवा कि नाणो, अन्नाणी ? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी / नियमा एगणाणी-केवलनाणी। F96-1.] भगवन् ! केवलज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [96-1 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। वे नियमत: एकमात्र केवलज्ञान वाले हैं / [2] तस्स अलधिया पं० पुच्छा। गोयमा! नाणी वि. अण्णाणि वि। केवलनाणवज्जाईचत्तारियाणाई, तिणि अण्णाजाई मयणाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org