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________________ 26] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [61-2 प्र.] भगवन् ! ज्ञानलब्धिरहित (अज्ञानलब्धि वाले) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [61-2 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं अज्ञानी हैं। उनमें से कितने ही जीव दो अज्ञान वाले (और कितने ही तीन अज्ञान वाले) होते हैं / इस प्रकार उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। 62. [1] आमिणिवोहियणाणलधिया णं भंते ! जीवा किं नाणो, अण्णाणी? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी; अत्थेगतिया दुष्णाणी, चत्तारि नाणाई भयणाए / [92-1 प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [92-1 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं ! उनमें से कितने ही जीव दो ज्ञान वाले, कितने ही तीन ज्ञान वाले और कितने ही चार ज्ञान वाले होते हैं। इस तरह उनमें चार ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। [2] तस्स अलधिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अण्णाणी ? गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि। जे नाणी ते नियमा एगनाणो-केवलनाणो / जे अण्णाणी ते प्रत्थेगतिया दुअन्नाणी, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [92-2 प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि-रहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [92-2 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी / जो ज्ञानी हैं, वे नियमत: एकमात्र केवलज्ञान वाले हैं, और जो अज्ञानी हैं, वे कितने ही दो अज्ञान वाले एवं कितने ही तीन अज्ञान वाले हैं / अर्थात्-उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। 63. [1] एवं सुयनाणलद्धीया वि। [63-1] श्रुतज्ञानलन्धि वाले जीवों का कथन प्राभिनिबोधिक ज्ञानलब्धि वाले जीवों के समान करना चाहिए। [2] तस्स अलद्धीया वि जहा आभिणिबोहियनाणस्स अलद्धीया / [93-2] एवं श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवों का कथन आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धिरहित जीवों की तरह जानना चाहिए। 64. [1] ओहिनाणलद्धोया पं० पुच्छा ? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी, अत्थेगतिया तिणाणो, प्रत्थेगतिया चउनाणी / जे तिणाणी ते प्राभिणिबोहियनाणी सुयनाणी प्रोहिनाणी / जे चउनाणी ते प्राभिणिबोहियनाणी सुतणाणी प्रोहिणाणी मणपज्जवनाणी। [64-1 प्र.] भगवन् ! अवधिज्ञानलब्धियुक्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [94-1 उ.] गौतम ! अवधिज्ञानल ब्धियुक्त जीव ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कतिपय तीन ज्ञान वाले हैं और कई चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे ग्राभिनिबोधिक ज्ञान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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