________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [267 [86 उ.] गौतम ! चारित्रलन्धि पांच प्रकार की कही गई है / बह इस प्रकार-सामायिकचारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनिकलब्धि, परिहारविशुद्धलब्धि, सूक्ष्मसम्परायल ब्धि और यथाख्यातचारित्रलब्धि / 57. चरित्ताचरित्तलखी णं भंते ! कतिविहा पण्णता ? गोयमा! एगागारा पण्णत्ता। [८७-प्र.] भगवन् ! चारित्राचारित्रलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [८७-उ.] गौतम ! वह एकाकार (एक प्रकार की) कही गई है। 86. एवं जाव उवभोगलद्धी एगागारा पण्णता / [88] इसी प्रकार दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, ये सब एक-एक प्रकार की कही गई हैं। 86. वीरियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णता? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-बालबीरियलद्धी पंडियवोरियलद्धी बालपंडियवोरिय लद्धी। ८९-प्र.) भगवन् ! वीर्यलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [८९-उ.] गौतम ! वीर्यलब्धि तीन प्रकार की कही गई है / वह इस प्रकार–बालवीर्यलब्धि, पण्डितवीर्यलब्धि और बाल-पण्डितवीर्यलब्धि / 10. इंदियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णता? गोयमा ! पंचविहा पण्णता, तं जहा--सोतिदियलद्धी जाव फासिदियलद्धी। [60 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [60 उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार की कही गई है / वह इस प्रकार--श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि : 61. [1] नाणलद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणी? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी; प्रथेगतिया दुनाणी / एवं पंच नाणाई भयणाए। [61.1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [19-1 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले होते हैं / इस प्रकार उनमें पांच ज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं / [2] तस्स अलरीया गं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणो ? गोयमा ! नो नाणो, अण्णाणी; अत्थेगतिया दुअण्णाणी, तिणि अण्णाणाणि भयणाए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org