________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] 74. देवभवस्था णं भंते !? जहा निरयभवत्था (सु. 71) / [74 प्र.] भगवन् ! देवभवस्थ जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [74 उ.] गौतम ! निरयभवस्थ जीवों के समान (सू. 71 के अनुसार) इनके विषय में कहना चाहिए। 75. अभवत्था जहा सिद्धा (सु. 38) / 6 / [75] अभवस्थ जीवों के विषय में सिद्धों की तरह (सू. 38 के अनुसार) जानना चाहिए। (छठा द्वार) 76. भवसिद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी० ? जहा सकाइया (सु. 46) / [76 प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिक (भव्य) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [76 उ.] गौतम ! इनका कथन सकायिक जीवों के समान (सू. 46 के अनुसार) जानना चाहिए। 77. प्रभवसिद्धिया पं० पुच्छा। गोयमा ! नो नाणी; अण्णाणी, तिणि अण्णाणाई भयणाए / [77 प्र.] भगवन् ! अभवसिद्धिक (अभव्य) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [77 उ.] गौतम ! ये ज्ञानी नहीं, किन्तु अज्ञानी हैं। इनमें तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 78. नोभवसिद्धियनोप्रभवसिद्धिया णं भंते ! जीवा० ? जहा सिद्धा (सु. 38) / 7 / [78 प्र.] भगवन् ! नोभवसिद्धिक-नो-प्रभवसिद्धिक जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [78 उ.] गौतम ! इनके सम्बन्ध में सिद्ध जीवों के समान (सू. 38 के अनुसार) कहना चाहिए। (सप्तम द्वार) 79. सण्णी पं० पुच्छा। जहा सइंदिया (सु. 44) / [79 प्र.] भगवन् ! संज्ञीजीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [76 उ.] गौतम ! सेन्द्रिय जीवों के कथन के समान (सू. 44 के अनुसार) इनके विषय में कहना चाहिए। 80. असण्णी जहा बेइंदिया (सु. 46) / . [80] असंज्ञी जीवों के विषय में द्वीन्द्रिय जीवों के समान (सू. 46 के अनुसार) कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org